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________________ ही का अभ्यास कर रहा था। फिर तो ऐसी बात आ गयी कि मैं घर में बैठा रहता- मेरी मां मेरे सामने बैठी है और वह कहे, यहां कोई दिखायी नहीं पड़ता, किसी को सब्जी लेने भेजना है। और मैं सामने बैठा हूं! वह कहें - यहां कोई दिखायी नहीं पड़ता। मैं कहूं, दिखायी तो मुझे भी कोई नहीं पड़ रहा है। घर में कुत्ता घुस जाए, मैं बैठा हूं, और मेरी मां कहे कि घर में कोई है ही नहीं, वो कुत्ता घुस गया है। और मैं सामने बैठा हूं! धीरे धीरे लोग स्वीकार कर लिये। क्या करेंगे? एक सीमा होती है, थोड़े दिन तक खींचातानी की। इधर ले गये, उधर ले गये, भेजा, एक सीमा होती है। तुम संन्यस्त हो गये, अब तुम अपने भाव में रमो। लोग ऐसा कहेंगे, वैसा कहेंगे, यहां खींचेंगे, वहां खींचेंगे, कोई झगड़ा - झांसा भी मत खड़ा करना और उन्हें समझाने की कोई चेष्टा भी मत करना । तुम्हारे समझाने से वे समझेंगे भी नहीं। जो तुम्हारे भीतर हुआ है तुम उस रस में बो। तुम अपनी मस्ती में मस्त रहो। जल्दी ही तुम पाओगे कि जो व्यंग कसते थे, वे तुममें उत्सुक होने लगे हैं। जो कल हंसते थे, वे भी तुम्हारे पास आकर बैठने लगे हैं। जो कल कहते थे तुम्हारा दिमाग खराब हो गया, वे भी तुमसे सलाह लेने लगेंगे। वे कहेंगे कि तुम बड़े शात हो गये। कैसे हुए पू क्या हुआ पुरानी तरह की चिंताएं तुम्हारे चेहरे पर नहीं दिखायी पड़ती। आंखों में बड़ी शांति की झलक आ गयी, एक प्रसाद पैदा 'हुआ, क्या हुआ? लेकिन तुम समझाने की कोशिश मत करना। तुम अपनी मस्ती में जीओ अब अगर उनको चिंता लेनी है तुम्हारी मस्ती से, तो यह उनका निर्णय है। कोई किसी को चिंता लेने से नहीं रोक सकता। - ही, अगर तुम उनकी चिंता के कारण चिंतित हो गये, तो तुम्हें वे नुकसान पहुंचा देंगे अ उन्हें ऐसा लगा कि तुम उनको राजी करने में उत्सुक हो - कि नहीं, तुमने जो किया वह ठीक है और वे गलत है-तो तुम व्यर्थ के विवाद में पड़ोगे । और ध्यान रखना, कुछ बातें ऐसी हैं जो विवाद से सिद्ध नहीं होतीं। संन्यास ऐसी ही बात है। तुम तो यही कह देना कि यही समझो कि मैं पागल हो गया हूं। इसे स्वीकार ही कर लेना । उनको कहने के लिए भी क्यों छोड़ते हो, खुद ही कह देना कि मेरा सब गया, पागल हो गया हूं। लेकिन मस्त हूं अपनी मस्ती में और पागलपन मुझे रास आ रहा है और मुझे सुख मिल रहा है, मुझे क्षमा कर दो। तुम अपनी समझदारी में ठीक, मैं अपनी नासमझदारी ठीक। धीरे-धीरे वे तुमसे राजी हो जाएंगे। और धीरे धीरे तुम पाओगे, तुम्हारी शांति का, तुम्हारे मौन का, तुम्हारी मस्ती का परिणाम होने लगा है। उनमें उलझो मत। - अगर अकेला होता मैं तो शायद कुछ पहले आ जाता लेकिन पीछे लगा हुआ था संबंधों का लंबा तांता कुछ तो थी जंजीर पांव की
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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