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________________ ऐसा होगा। ऐसा स्वाभाविक है। इसे स्वीकार करो। यह साधना के मार्ग की अनिवार्य कड़ी है। ऐसा न हो तो आश्चर्य है ! ऐसा होता है तो क्या आश्चर्य? ठीक ही हो रहा है। तुम इससे उद्विग्न मत होना, न परेशान होना, न इसके कारण किसी तरह की चिंता लेना और न उपाय करना कि इन सब लोगों का मन शात हो जाए। उपाय ही मत करना, अन्यथा वे और अशात होते जाएंगे। तुम जितना उपाय करोगे, वे उतनी चेष्टा करेंगे तुम्हारे उपाय तोड़ देने के। तुम तो उपेक्षा रखना। ज्यादा देर न चलेगा यह उपद्रव। जल्दी ही लोग तुम्हें भूल जाएंगे। वे कहेंगे, ठीक है, अब कोई गया तो गया । आदमी मर जाता है तो उसे भूल जाते हैं। तुम तो सिर्फ संन्यासी हुए हो लोग भूल जाएंगे, वे कहेंगे कि ठीक है..। मेरे बचपन में मुझे कोई रस न था कि बाजार जाऊं, कि किसी के घर जाऊं, कि किसी के भोज में जाऊं, कि किसी के घर शादी में जाऊं। मेरे घर के लोग स्वभावतः परेशान होते थे। वे मुझे ले जाना चाहते। वे मुझे घसीटते। मैं कहता, ठीक है, घसीटते हो तो चलता हूं। लेकिन वहां जाकर खड़ा हो जाता। लोग पूछने लगते, क्या बात है? फिर घर के लोग मेरे समझ गये कि इसको ले जाना ठीक नहीं, और उल्टी झंझट खड़ी होती है। यह वहा खड़ा हो जाता है, या बैठ जाता है, तो लोग पूछने लगते हैं, इसको क्या हो गया है, क्या गड़बड़ है? वे मुझे ले जाना छोड़ दिये। पहले मुझे भेजते थे इसी ख्याल से, दयावश, कि बाजार जाए, कुछ सब्जी खरीद लाए, कुछ सामान चाहिए तो ले आए, नहीं तो यह जिंदगी सीखेगा कब और कैसे? मुसीबत थी कि मैं अगर बाजार जाऊं और उन्होंने कहा मुझसे कि जाओ, अजवाइन खरीद लाना, तो मुझे अजवाइन भूल जाए। भेजा अजवाइन खरीदने, खरीद कर ले आऊं इलायची। वे लोग सिर ठोंक लें! याद करते हुए जाऊं रास्ते भर कि अजवाइन अजवाइन, अजवाइन. अब कोई आदमी रास्ते में मिल गया, उन्होंने कहा, कहां जा रहे हो, उतने में वह अजवाइन गड़बड़ हो जाए! फिर घर लौटकर आना पड़े। धीरे- धीरे उन्होंने मुझे भेजना बंद कर दिया। या मुझे लेने सामान भेजें - तो मुझे कोई रस ही नहीं था उस बात में, मैं उस झंझट में पड़ना भी नहीं चाहता था। जैसे वे मुझे भेजें, जाओ केले खरीद लाओ। तो मैं जाऊं, केले के दूकानदार से पूछूं - सबसे कीमती और अच्छे केले कौन-से हैं? अब वे दूकानदार सब जानते थे मुझे कि यह.. वे रही से रही सडे —गले केले मुझे पकड़ा दें कि ये सबसे ज्यादा कीमती, मैं कहूं, बस ठीक है। मैं एक दफा केले खरीदकर घर लाया, मेरी बुआ ने मुझे भेजा था कि केले खरीद लाओ तो केले खरीद लाया, उससे मैंने पूछा कि सबसे अच्छे जो हों और सबसे ज्यादा दामवाले, तो उसने बिलकुल सड़े गले केले और सबसे ज्यादा दामवाले दे दिये। मैं घर लाया तो मेरी बुआ ने सिर पर हाथ मार लिया और कहा कि इनको जाकर पड़ोस में एक भिखारिन है उसको दे आओ। ठीक है, मैं गया भिखारिन को, भिखारिन मुझसे बोली- फेंक दो कूड़े में। इधर कभी इस तरह की चीज मत लाना। मैंने कहा, ठीक है। मैं कूड़े में फेंक आया। धीरे- धीरे घर के लोग समझ गये कि यह.. और मुझे पहले ही से पक्का पता था कि आखिर में मुझे क्या करना है - कुछ नहीं करना है - तो अभ्यास भी क्यों करना ? न करने
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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