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________________ मात्र कर्म मेरे हों परिणाम तुम्हारा हो उंगलियां सुमरनी हों सांसें अनुसरणी हों शाश्वत स्वर आत्म-सुमन देकर भी करता मन दे दूं कुछ और अभी इस पीड़ा को समझना। तो ही इन सूत्रों में प्रवेश हो सकेगा। और ऐसा मत सोचना कि ये सूत्र मात्र पुनरुक्ति हैं। पुनरुक्ति दिखायी पड़ते हैं, क्योंकि जो अष्टावक्र ने कहा है, एक अर्थ में वही जनक कह रहे हैं, लेकिन पुनरुक्ति नहीं हैं। क्योंकि अष्टावक्र ने जो कहा था, जनक उसे सिर्फ तोते की भांति अगर दोहराते तो पुनरुक्ति है। वह जनक के जीवन का अंतःप्रकाश बन गया है। अब वह जो कह रहे है, अपने प्राणों का ही बोल है। शिष्य जब गुरु की वाणी को अपना जीवंत अनुभव बना लेता है, तब पुनरुक्ति नहीं है। यदयपि शब्द वही होंगे, पुनरुक्ति नहीं होगी। इन शब्दों को फिर से जीवित होने का अवसर मिल गया। शिष्य में जाकर ये पुनरुज्जीवित हुए हैं। वही हैं, फिर भी वही नहीं हैं। ऐसा उल्लेख है एक झेन फकीर के जीवन में कि वह अपने गुरु के पास था और गुरु ने उसे कोई ध्यान के लिए एक समस्या दी थी, कोआन दिया था। वह उस पर विचार करता है, मनन करता है चिंतन करता है। कोआन था कि एक हाथ की ताली कैसे बजती है? एक हाथ की ताली बजती नहीं। जितनी ध्वनियां हम जानते हैं, उनमें से कोई भी एक हाथ की ताली है नहीं। दो का संघर्षण हो तो ही आवाज होती है। ध्वनि हमारी जानकारी में जितनी हैं, सब संघर्षण से होती हैं। और जो ध्वनि संघर्षण से होती है, वह संघर्ष ही है। हिंसात्मक है। और जो ध्वनि संघर्ष से पैदा होती है, शाश्वत नहीं हो सकती। जो कभी पैदा हुई कभी नष्ट हो जाएगी। झेन फकीरों का यह ध्यान का सूत्र कि एक हाथ की ताली खोजो, इसका अर्थ होता है, एक ऐसी ध्वनि को खोज लो जो बज ही रही है, सनातन से, प्रारंभ से, अंत तक, सदा बजती रहेगी। जो न कभी मिटती है, न कभी पैदा होती है। जिसको भारतीय रहस्यवादी अनाहत नाद कहते हैं। आहत नाद का अर्थ होता है, टक्कर से; अनाहत नाद का अर्थ होता है, बिना टक्कर के। तो शिष्य खोजता है, ध्यान करता है, रोज-रोज उत्तर लाता है। महीनों बीत जाते हैं, थक जाता है, फिर किसी अनुभवी दूसरे साधक से पूछता है कि मैं क्या करूं, महीने बीत गये, वर्ष बीत जा रहे, मैं गुरु को कैसे उत्तर दूं? तो उस अनुभवी शिष्य ने कहा कि वर्षों मुझे भी लगे थे और जब-जब मैं उत्तर ले गया, तब-तब मैं गलत पाया गया। फिर एक दिन मुझे अनुभव हुआ कि इसका कोई उत्तर नहीं हो सकता मुझे स्वयं ही एक हाथ की ताली बनकर जाना पड़ेगा, वही उत्तर होगा। तब मैं परिपूर्ण शात और शून्य
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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