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________________ तुम न मिलते उम्र मेरी व्यर्थ होती सांस ढोती शव विवश अपना स्वयं ही और मेरी जिंदगी किस अर्थ होती प्राण को विश्वास सौंपा बस तुम्हीं ने उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं तुम मिले हो क्या मुझे साथी सफर में राह से कुछ मोह जैसा हो गया है एक सूनापन कि जो मन को इसे था राह में गिरकर कहीं वह खो गया है शोक को उत्सव किया है बस तुम्हीं ने उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं यह हृदय पाहन बना रहता सदा ही सच कहूं यदि जिंदगी में तुम न मिलते यूं न फिर मधुमास मेरा मित्र होता और अधरों पर न यह फिर फूल खिलते भग्न मंदिर फिर बनाया बस तुम्हीं ने उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं तीर्थ सा मन कर दिया है बस तुम्हीं ने उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं शिष्य की बड़ी असमर्थता है धन्यवाद देने में । किन शब्दों में बांधे धन्यवाद? क्योंकि शब्द गुरु के ही दिये हुए हैं। मूक ही निवेदन हो सकता है। लेकिन फिर भी कहने का कुछ मन होता है। बिन कहे भी रहा नहीं जाता। भी मैं तो एक ही उपाय है कि गुरु की प्रतिध्वनि गंजे । जो गुरु ने कहा है, शिष्य उसे अपने प्राणों गुजाए। जो गुरु ने बजाया है, शिष्य की प्राण- वीणा पर भी बजे । यही धन्यवाद होगा, यही आभार होगा। गुरु से उऋण होने का कोई उपाय नहीं है। बुद्ध से उनके शिष्यों ने पूछा है कि इतना आपने दिया है, हम कभी उऋण होना चाहें तो कैसे? हम चुका कैसे पाएंगे? हम कृतज्ञता कैसे ज्ञापन करें? तो बुद्ध ने कहा, एक ही काम है, एक ही संभावना है कि जो मैंने तुम्हें दिया है, जाओ और दूसरों को दो। बांटो। यही एक उपाय है- जो सुगंध गुरु से मिली है, वह बांट दी जाए। इन अंतिम सूत्रों में जनक उसी अपूर्व भावदशा को अभिव्यक्त कर रहे हैं। और इस अभिव्यक्ति में सारा संवाद संक्षिप्त होकर आ गया है। यह सार - निचोड़ है। अगर ये अंतिम सूत्र बच जाएं और
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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