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________________ बहुत स्थानों पर बैठा, बैठ नहीं पाया, उठ उठ आता है। उसके योग्य जगह नहीं मिलती। उसके योग्य जगह तो परमात्मा ही है। जब भी तुम प्रेम में पड़े तुम परमात्मा के ही प्रेम में पड़े लेकिन शायद तुमने ज्यादा की मांग कर ली बहुत थोड़े से अब किसी स्त्री से या किसी पुरुष से तुम परम सौंदर्य की मांग करो तो भूल हो जाएगी। या परम सत्य की, या परम श्रेयस की। परम की मांग तो परमात्मा से ही हो सकती है। तुमने इधर-उधर माग की तो मांग पूरी न होगी तो तुम अतृप्त हो जाओगे। तो बेस्वाद हो जाएगा मन, कडुवा हो जाएगा, तिक्त हो जाएगा। फिर तुम प्रेमपात्र बदलते रहोगे। हम इसीलिए तो कभी प्रेम में तृप्त नहीं हो पाते। प्रेम तृप्त होता है। प्रेम भी बैठता है सिंहासन पर पर अपने सिंहासन पर । धर लिये प्यासे अधर पर आह के सागर सागर भी तुम पी जाओ - प्यास लगी हो और आदमी सागर में हो, तो जल जैसा ही तो लगता है सागर का जल, लेकिन उसके पीने से प्यास बुझती नहीं, प्यास बढ़ती है। भूलकर सागर का पानी मत पी लेना। सागर का पानी पीने से प्यास बुझती नहीं, बढ़ती है। और सागर के पानी के बिना आ जिंदा रह सकता है, सागर का पानी पीआ तो मरेगा, निश्चित मौत हो जाएगी । और सागर का पानी पानी जैसा लगता है। सिर्फ दिखायी पड़ता है पानी जैसा, पानी नहीं है। सागर का पानी भी पानी न सकता है लेकिन बहुत तरह की शुद्धियों से गुजरेगा तबा अभी जैसा है, अभी तो बहुत खतरनाक है। धर लिये प्यासे अधर पर आह के सागर प्यास पूरी इस मरुस्थल की नहीं होती पीलिया इस उम्र ने वह प्रेम - गंगाजल अब इसे इच्छा किसी जल की नहीं होती और एक बार तुम्हें प्रेम का वास्तविक अर्थ समझ में आ जाए, अनुभव में आ जाए, एक बार प्रार्थना का स्वाद आ जाए पीलिया इस उम्र ने वह प्रेम - गंगाजल फिर तुम्हें किसी और पानी की जरूरत न रह जाएगी। जीसस के जीवन में उल्लेख है, वे एक कुएं के पास गये। थके -मांदे हैं, राह से यात्रा करके आ रहे हैं, दूर से यात्रा करके आ रहे हैं। कुएं पर पानी भरती एक स्त्री को उन्होंने कहा कि मुझे पानी पिला दे। लेकिन उस स्त्री ने कहा कि मैं थोड़ी ओछी जाति की हूं, शायद आप पीछे पछताएं कि मेरा पानी पी लिया। जीसस ने कहा, तू फिकर छोड़, तू मुझे पानी पिला दे। और फिर मैं तुझे ऐसा पानी पिला सकता हूं - मेरा पानी - कि तेरी प्यास सदा-सदा के लिए बुझ जाए। तेरे पानी से तो क्षण भर को मेरी प्यास बुझेगी, लेकिन मेरे पानी से तेरी प्यास सदा को बुझ सकती है। जीसस जिस पानी की बात कर रहे हैं उसी को मैं प्रेम कहता हूं। प्राण का यह दीप जलने के लिए है प्यार से अंतर पिघलने के लिए है
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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