SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अब इसे इच्छा किसी जल की' नहीं होती तुम जो प्रेम के मार्ग से खोज रहे हो, वह परमात्मा को ही खोज रहे हो, नाम तुमने कुछ भी दिया हो। इसीलिए तो साधारणत: प्रेम तप्त नहीं करता, और अतप्त कर जाता है। कौन पति किस पत्नी से तृप्त हुआ है! या कौन पत्नी किस पति से तृप्त हुई है! या कौन मां किस बेटे से तृप्त हुई है! कौन मित्र किस मित्र से तृप्त है! कारण पूछो। क्या कारण है? संसार में सभी लोग प्रेम करते हैं और अतृप्ति का ही अनुभव होता है। कहीं तृप्ति नहीं होती। क्योंकि प्रेम की जो खोज है, वह परमात्मा से ही तृप्त हो सकती है। तुमने किसी को प्रेम किया, प्रेम करते ही तुम्हारी जो आकांक्षा होती है गहरे में वह यह होती है कि यह व्यक्ति परमात्मा जैसा हो। वह सिद्ध नहीं होता परमात्मा जैसा, इसलिए अतृप्ति रह जाती है। बेस्वाद हो जाता है मन, तिक्त हो जाता है। तुम जब किसी व्यक्ति को प्रेम करते हो तो तुमने देखा कि तुम्हारी आकांक्षा होती है, इससे सुंदर और कोई न हो, इससे श्रेष्ठ कोई और न हो, इससे सत्यतर कोई और न हो। तुमने परमात्मा की मांग कर ली। तुमने सत्यम् शिवम् सौंदर्यम् को मांग लिया। और निश्चित ही कोई व्यक्ति इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता, तो धीरे – धीरे प्रेमी हताश हो जाता है। वह कहता है कि नहीं, गलत जगह मांग लिया। अमृत पीने गये थे और जो पीआ तो पता चलता है कि अमृत तो कुछ भी नहीं है, जहर सिद्ध होता है। फिर मन उचाट हो जाता है। फिर भागा- भागा, फिर कहीं और, किसी और जगह, किसी और प्रेम में पड़ जाए, वहां खोज लें-ऐसा जन्मों-जन्मों तक मन का पक्षी उड़ता है। नये -नये स्थानों पर बैठता है। एक सूफी फकीर को एक सम्राट मिलने आया। सम्राट बहुत दिन से उत्सुकथा मिलने को इस फकीर से। और कई बार संदेशा भी भेजा था कि तुम आओ। लेकिन फकीर कहता है कि मिलने को अगर तुम उत्सुक हो तो तुम्ही आओ मेरे आने से चूक हो जाएगी। आने को मैं आ सकता हूं लेकिन सार न होगा। क्योंकि जिज्ञासु जब आता है तो उसके आने में ही जिज्ञासा सघन होती है, प्रगट होती है। तुम इतना तो मूल्य चुकाओ तो अंततः सम्राट को आना पड़ा। वह जब आया तो फकीर की झोपडी पर फकीर नहीं था, उसकी पत्नी थी। उसने कहा, आप बैठें, आप विराजे, मैं उन्हें बुला लाती हूं, वे पीछे खेत पर काम करने गये हैं। तो सम्राट ने कहा कि ठीक है, तुम बुला लाओ: सम्राट वहीं टहलने लगा। उसकी पत्नी ने फिर कहा कि आप आए, हमारे धन्यभाग! पर बैठे तो। उसने एक फटी-पुरानी दरी बिछा दी कि आप विराजे! लेकिन सम्राट ने कहा कि मैं टहलूंगा, तू बुला ला पति को ____ वह बड़ी दुखी होकर पति के पास गयी, उसने पति को रास्ते पर कहा कि सम्राट कुछ अजीब है र मैंने बार-बार कहा कि बैठे, विराजे, दरी भी बिछा दी, मगर वह बैठता नहीं। फकीर हंसने लगा। उसने कहा कि वह दरी उसके बैठने योग्य नहीं। उसके बैठने योग्य जगह होगी तभी बैठेगा। तुमने बहुत जगह मन के पंछी को बिठाने की कोशिश की वह बैठ नहीं पाया। प्रेम का पक्षी
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy