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________________ तो ऐसा है जैसे कोई चम्मच से सागर को उलीचने चला । परमात्मा अनुमान नहीं है, तर्क नहीं है, सिद्धात नहीं है, अनुभव है। अनुभव का अर्थ होता है, जो अपने को पिघलाका । और तब ऐसा पता नहीं चलेगा कि घट है तो घटकार भी होगा, तब तो तुम जानोगे कि घट और घटकार दो नहीं हैं, एक ही हैं। परमात्मा और उसकी कृति दो नहीं हैं । स्रष्टा और सृष्टि दो नहीं हैं । ' तुम्हारे मन में परमात्मा के संबंध में जो धारणा बना दी गयी है वह ऐसी है कि दूर कहीं आकाश में कोई बैठा स्वर्ग के सिंहासन पर। इसलिए तुम पास नहीं देखते, तुम दूर देखते हो। तुम इन पास खड़े वृक्षों में नहीं देखते, चट्टानों में नहीं देखते, तुम दूर खोजते हो चांद-तारों के पार । और परमात्मा पास है। पास से भी पास है। तुम अपनी पत्नी में नहीं देखते, तुम अपने पति में नहीं देखते, न अपने बेटे में देखते हो। तुम देखते हो राम में, कृष्ण में, बुद्ध में, महावीर में - बड़े दूर। वेद में, कुरान में, गीता में, बाइबिल में। तुम अपने हस्ताक्षरों में नहीं देखते। तुम्हारी पत्नी ने तुम्हें जो प्रेम-पत्र लिखा है उसमें नहीं देखते, वेद में। तुम्हारे बेटे ने तुतलाकर तुमसे जो कहा है उसमें नहीं, कृष्ण के वचनों में। तुम दूर देखते हो, इसलिए चूकते हो। और परमात्मा पास है। परमात्मा तुम्हारे बेटे में तुतला रहा है। तुम्हारे बेटे में चलने की कोशिश कर रहा है। वृक्षों में हरा है, पक्षियों में गुनगुना रहा है। हवा के झोंकों में अदृश्य है। जो तुम्हारे चारों तरफ घिरा हुआ है वह परमात्मा के अतिरिक्त और कोई भी नहीं है। तुम कहीं भी झुको, उसी के चरणों पर तुम्हारे हाथ पड़ते हैं। तुम कहीं भी आंख उठाओ, उसी का दर्शन । इसलिए तुम इस तरह मत पूछो, अन्यथा तुम्हारी जिंदगी ऐसे ही गुजर जाएगी| कहीं प्रश्न में भूल है। अफसोस हमारी उम्र रोते गुजरी नित दिल से गुबारे - गम ही धोते गुजरी देखा न कभी ख्वाब में अपना यूसुफ हर चंद तमाम उम्र सोते गुजरी अगर तुमने पास नहीं देखा तो तुम सोते-सोते ही जिंदगी गुजार दोगे, यूसुफ तुम्हें दिखायी न पड़ेगा, वह प्यारा तुम्हें दिखायी न पड़ेगा। वह प्यारा तुम्हें छू रहा है। जब तुम श्वास भीतर लेते हो तब वही प्यारा तुम्हारे भीतर गया। जब तुमने पानी पीया तो वही प्यारा तुम्हारे कंठ में गया। और तुम्हारे कंठ में जो तृप्ति का भाव जगा, वह भी उसी प्यारे के कंठ में जग रहा है। उसके अतिरिक्त कोई भी नहीं है। परिभाषा मत पूछो, इशारे पूछो। ऐसा मत कहो कि मैं बता दूं कहां है परमात्मा, क्या है उसकी प्रतिमा? मस्जिद में है कि मंदिर में कि गुरुद्वारे में? सब जगह है। और जिसने देखने की कोशिश की एक ही जगह, वह चूक गया। जिसने कहा मंदिर में ही है, वह आदमी नास्तिक। जिसने कहा मस्जिद में ही है, वह आदमी नास्तिक । और जिसने कहा चर्च में ही है, वह आदमी नास्तिक। जिसने कहा जीसस के सिवाय किसी में नहीं, वह आदमी नास्तिक | और
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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