SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से ही असत्य हो जाता है। क्योंकि शब्द बड़े सीमित हैं, सत्य बड़ा विराट है। जैसे मुट्ठी में कोई आकाश बांधने को कहे। मुट्ठी में भी आकाश हो सकता है, मुट्ठी अगर खुली हो। मुट्ठी अगर बंद हो तो आकाश खो जाता है। परिभाषा तो बंद मुट्ठी है। इसलिए परिभाषा तो नहीं हो सकती, इशारे हो सकते हैं। इशारा खुली मुट्ठी है। कुछ बंधा हुआ नहीं है सिर्फ इशारा है। इंगित हो सकते हैं, परिभाषा नहीं हो सकती। और परमात्मा की प्रतिमा पूछते हो कैसी है? सब प्रतिमाएं उसकी हैं। जो भी तुमने देखा है, उसी की प्रतिमा है। उसके अतिरिक्त कोई और है नहीं। अनंत- अनंत उसकी प्रतिमाएं हैं। फिर भी किसी प्रतिमा में वह चुक नहीं गया है। सब रूप उसके हैं। और सब रूप उसके इसीलिए हो सकते हैं कि वह स्वयं अरूप है। अरूप के ही सब रूप हो सकते हैं। कितनी लहरें सागर में उठती हैं। सभी लहरें सागर की हैं। छोटी लहर, बड़ी लहर, झागवाली लहर, गैरझागवाली लहर, प्रचंड तूफान की तरह आती हुई लहर कि डुबा दे नौकाओं को सभी लहरें उसकी हैं, सभी रूप उसके हैं, एक ही सागर के । लेकिन सागर अरूप है। जिसने पूछा है, वह भी परमात्मा का एक रूप है, वह भी एक प्रतिमा है। जब तुम दर्पण के सामने सुबह खड़े होकर दर्पण देखते हो, तो जिसको तुम देखते हो वह भी परमात्मा है। मंदिर में रखी ग्रतइयां ही परमात्मा नहीं हैं, राह के किनारे अनगढ़ जो पत्थर पड़े हैं, वे भी परमात्मा हैं। क्योंकि परमात्मा के सिवा कुछ और है नहीं। परमात्मा शब्द का एक ही अर्थ होता है, अस्तित्व। परमात्मा शब्द के कारण धोखे में मत पड़ जाना, इसका मतलब व्यक्ति नहीं होता। इसका मतलब होता है, यह जो विराट ऊर्जा है जगत की, यह जो अस्तित्ववान ऊर्जा है, यही । सोचता हूं जब कभी संसार यह आया कहां से चकित मेरी बुद्धि कुछ भी न कह पाती और तब कहता हृदय अनुमान तो होता यही है घट अगर है तो कहीं घटकार भी होगा लेकिन जिसने भी यह पंक्तियां लिखीं उसे परमात्मा का कोई पता नहीं है। परमात्मा का अनुमान नहीं होता, परमात्मा कोई इनफरेंस नहीं है। अधिकतर तुमने यही बातें सुनी होंगी ये बातें बचकानी हैं। लोग कहते हैं और तब कहता हृदय अनुमान तो होता यही है घट अगर है तो कहीं घटकार भी होगा अगर घड़ा है, तो घड़े को बनानेवाला भी कोई होगा। लेकिन तब तो बड़ी झंझट खड़ी होगी। फिर घटकार है, तो घटकार को बनानेवाला कौन होगा! यह बात कुछ ज्यादा दूर न जाएगी। दूर जाती नहीं । अनुमान से परमात्मा का कोई संबंध नहीं है। अनुभव से अनुमान तो सब कल्पित है। अनुमा तो हमारी मजबूरी है, क्योंकि हमें लगता है, इतना बड़ा विराट है तो कोई चलानेवाला होगा! मगर यह हमारी बुद्धि का अनुमान है। और बुद्धि का अनुमान क्या! क्या खबर लाएगा परमात्मा की। यह
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy