SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शायद देगा ही। क्योंकि उसी सलाह देने के आधार से वह तुम्हारे मन में एक प्रतिमा पैदा करेगा कि कम से कम यह आदमी चोर तो नहीं हो सकता, जो चोरी के खिलाफ सलाह दे रहा है। बेईमान ईमानदारी की बातें करेगा। जिनको कुछ भी पता नहीं है, वे परम सत्य की बातें करेंगे। किताबों से उधार ले लिया होगा। शब्दजाल सीख लिया होगा । उसी को दूसरों पर फेंके जाते हैं। बुद्ध ने कहा है, अगर दुनिया में इतनी भी निष्ठा आ जाए कि आदमी वही कहे जितना जानता है, तो दुनिया में से आधा अंधकार दूर हो जाए। लेकिन लोग जो नहीं जानते वह भी कहे चले जाते हैं। एक जैन मुनि के साथ मुझे एक दफे बोलने का मौका आया| उन्होंने आत्मज्ञान पर एक घंटा व्याख्यान दिया। सुनकर तो मुझे लगा कि उनको कुछ भी पता नहीं है। वह जो भी कह रहे हैं, सब उधार है, सब बासा है। जब मैंने यह कहा तो वह बड़े बेचैन हो गये। मगर आदमी भले थे। चुप रहे उन्होंने कुछ विवाद खड़ा न किया। सांझ एक आदमी को मेरे पास भेजा कि मैंने दिन भर सोचा आपने जो कहा और मुझे लगता है कि ठीक है, मुझे पता नहीं है। मैं चाहता हूं, आपसे मिलूं। तो मैंने कहा, मैं आऊंगा। इतना भला आदमी चाहे, तो उसे यहां मेरे पास आने की जरूरत नहीं, मैं आ जाऊंगा। तो मैं गया, वहां दस-बीस लोग इकट्ठे हो गये थे। लोगों को खबर मिल गयी। तो जैन - मुनि कि मैं एकांत में बात करना चाहता हूं। मैंने कहा, अब इतनी हिम्मत तो करो! ईमानदारी है, तो इतनी हिम्मत और इनके ही सामने करो। घबड़ाना क्या है? यही न, इन लोगों को पता चल जाएगा आप अभी आत्मज्ञानी नहीं हैं। चल जाने दो पता। यह भी आत्मज्ञान की यात्रा पर पहला कदम होगा। सत्तर साल आपकी उम्र हुई मैंने उनसे कहा, आप कहते हैं कोई पचास साल हो गये आपको संन्यास लिये, बीस साल के जवान थे तब संन्यास लिया, आपकी बड़ी खयाति है, हजारों आपके शिष्य हैं जो आप कह रहे हैं उसमें से कुछ भी आपको पता नहीं है, क्यों कह रहे हैं? उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। उन्होंने कहा, मैंने कभी इस तरह सोचा ही नहीं। आज आप पूछते हैं तो बड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया हूं यह मैंने कभी सोचा ही नहीं कि क्यों कह रहा हूं। कह रहा हूं? यह बेहोशी में चलता रहा है। संन्यस्त हुआ था, शास्त्र पढ़ने शुरू किये, शास्त्र पढ़ने से शुरू हुआ, लोग पूछने आने लगे, मैं सलाह देने लगा, यह तो भूल ही गये कि ये पचास साल कैसे बीत गये इसी सलाह में। और जो सलाहें मैंने दी हैं, उनका मुझे कुछ पता नहीं। दुनिया में इतना परामर्श है, इतनी सलाहें दी जा रही हैं, उनकी वजह से बड़ी कीचड़ तुम्हारे पेट में मची हुई है। नानाविधपरामर्श | यह जो न मालूम कितने-कितने तरह के परामर्श, मत-मतांतर, सिद्धात, शास्त्र लोगों ने समझा दिये हैं, उन सबको आपने खींच लिया। आपने मेरी शल्य चिकित्सा कर दी, सर्जरी कर दी, जनक कहा। मैं मुक्त हुआ 1 आपने काट लिया। 'अपनी महिमा में स्थित हुए मुझको कहां धर्म है कहा काम है, कहां अर्थ: कहां द्वैत और कहां अद्वैत?
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy