SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर खोजने चढ़ गया। और ऊंट ! मगर उसकी आवाज में कुछ शालीनता थी। और उसकी आवाज में कुछ बल था। उसकी आवाज में कुछ था जो पागल की आवाज में नहीं होता। जो कभी-कभी किसी पहुंचे पुरुष की आवाज में होता है तो रस भी मालूम हुआ, उत्सुकता भी जगी। सोचने भी लगा कि इस आदमी का पता लगा ले, लेकिन पता नहीं लगा। पर दूसरे दिन जब दरबार लगा तो कोई आदमी आकर द्वारपाल से लड़ने लगा। आवाज सुनायी पड़ी तो पहचान गया, वही आवाज । इब्राहिम भागा आया बाहर और उसने कहा, इस आदमी को भीतर आने दो। जद्दोजहद इस बात की हो रही थी कि वह आदमी-स्व भिखारी, फकीर, पर बड़ा अलमस्त - वह कह रहा था कि इस सराय में मुझे ठहर जाने दो। और पहरेदार कह रहा था, यह सराय नहीं है, राजा का महल, राजा का निवास-स्थान है, तुम पागल तो नहीं हो गये हो! और वह कह रहा था कि मैं तुमसे कहता हूं यह सराय है, मुझे ठहर जाने दो, यह फिजूल की बातें छोडो, कौन राजा, किसका महल ! दो दिन का वास है, आज आए, कल गये, यह सब सराय हैं, मुझे ठहर जाने दो। यह तो उसकी आवाज इब्राहिम ने सुनी तो वही आवाज थी। तो वह भागा आया। उसने कहा, इस आदमी को भीतर आ दो, इसकी मैं तलाश कर रहा हूं। और इब्राहिम ने कहा कि तुम मुझे बोलो तुम यह क्या कह रहे हो! इसको तुम सराय कहते हो। यह सम्राट का अपमान है। यह मेरा महल है। वह आदमी हंसने लगा। उसने कहा, मैं पहले भी आया था, तब एक दूसरा आदमी कहता था कि यह उसका महल है। उसने कहा, वह मेरे पिता जी थे। पर मैं उसके पहले भी आया था, वह फकीर बोला, और तब एक तीसरा आदमी था और वह कहता था कि यह मेरा महल है। और मैं हमेशा से कह रहा हूं, यह एक सराय है। इब्राहिम ने कहा, वह मेरे पिता के पिता थे। तो उसने कहा, अब तो समझो। एक आदमी दावा करता था, मेरा महल, वह गया। दूसरा दावा करने लगा, मेरा महल, वह गया। अब तुम आ गये। कितनी देर तुम रहोगे? मैं फिर आऊंगा, और किसी चौथे को पाऊंगा, यह झंझट कब तक चलेगी? इसलिए मैं कहता हूं यह सराय है, यहां लोग ठहरते और चले जाते, रातभर का बसेरा है, सुबह पक्षी उड़ जाते, मुझे भी ठहर जाने दो। तुम भी ठहरे हो, क्यों मालिक बनते हो? कहते हैं, इब्राहिम को ऐसा बोध हुआ, इस आदमी की आवाज, इस आदमी का बल, इस आदमी की चोट से कि उसने उस आदमी को कहा कि तुम ठहरो, मैं जाता हूं। जब यह सराय ही है तो तुम ठहरो मजे से, लेकिन मैं चला और इब्राहिम ने महल छोड़ दिया ! और जब भी कोई इब्राहिम से पूछता बाद में कि तुमने यह किया क्या? उसने कहा, बात समझ में आ गयी । है तो बात सच। कितने लोग इस महल में ठहर चुके आ चुके, जा चुके, मैं भी चला जाऊंगा। जब जाना ही है तो क्या दावा! छोड़ दिया। और इब्राहिम कहता कि जिस दिन से मैंने वह सराय छोड़ी, मुझे मेरा घर मिल गया। मैंने जान लिया, अपना असली निवास स्थान पा लिया। संन्यास साहस तो है। लेकिन इतना कठिन नहीं जैसा तुम सोचते हो। समझ में आ जाए तो बड़ा सरल। इतना ही तुमसे कह रहा हूं यह संसार सराय है और मैं तो तुमसे यह भी नहीं कहता
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy