SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिंदगी के वादों में। अभी उदास होने की क्या जरूरत? अभी निराश होने की क्या जरूरत । अभी तो मरे नहीं! अभी तो जिंदा हैं। तो जिंदा हैं तो और थोड़ा भोग लें। अभी भोग अर्थ रखता है। अभी भोग से रस जुड़ा है। इसलिए तुम कहते हो, मैं बूढ़ा हुआ जा रहा हूं फिर भी संन्यास का साहस नहीं जुटा पाता हूं यह प्रश्न साहस का नहीं। तुम शरीर से के हुए जा रहे हो मन, मन अभी का नहीं । मुल्ला नसरुद्दीन एक राह से जा रहा है और एक सुंदर युवती को देखकर अपना मार्ग मोड़ दिया, उसी के पीछे चलने लगा। भीड़ भाड़ देखकर उसे धक्का मार दिया। उस स्त्री ने कहा कि थोड़ा खयाल तो करो, सब बाल सफेद हो गये! मुल्ला ने कहा, बाल भले सफेद हो गये हों, दिल अभी भी काला है। होने से, शरीर के तल पर कुछ भी नहीं होता। ये तो धूप में पक गये बाल, इनमें कोई अनुभव की संपदा नहीं है। जब अनुभव की संपदा होती है, तो आदमी वृद्ध होता है। सिर्फ का होने से कुछ फायदा नहीं, वृद्ध ! इसलिए पूरब में हम के को बड़ा समादर देते थे। वह हर के को नहीं है, बुजुर्ग को। बुजुर्ग शब्द 'आदर का हो गया। वृद्ध पूज्य हो गया। कारण? देख ली जिंदगी उसने और देखकर पाया कि वहा कुछ भी नहीं है। देखकर व्यर्थ पाया, जिंदगी का सपना उसका टूट गया। अब आंखों में उसके कोई सपना नहीं है। अब जिंदगी से उसके कोई संबंध नहीं रह गये। अब वह जानता है, सब व्यर्थ है। तुम के हुए जा रहे हो फिर भी संन्यास का साहस नहीं जुटा पाते, क्योंकि भीतर अभी भी संसार बसा है। जिंदगी हाथ से छूटी जा रही है, लेकिन तुम छोड़ने को अभी उत्सुक नहीं हो, तुम अभी पकड़ना चाहते हो। मौत आकर छीन लेगी, लेकिन तुम अपने हाथ से छोड़ने को राजी नहीं हो। संन्यास का क्या अर्थ है ? संन्यास का अर्थ है, मौत को पहचान लेना । संन्यास का अर्थ है, मौत की परख हो जाना। संन्यास का सिर्फ इतना ही अर्थ है कि जो मौत मुझसे छीन लेगी, यह काम मौत को क्यों करने दूं मैं ही कर दूं। यह मैं ही छोड़ देता हूं। मौत छीनेगी, यह छीना-झपटी क्यों करवानी? यह अशोभन कृत्य क्यों करवाना ? इसे प्रसादपूर्ण ढंग से क्यों न कर दें, हमीं दे देते हैं। संन्यास का इतना ही अर्थ है कि तुम उस सबको छोड़ देते हो जो मौत तुमसे छीन लेती है, सिर्फ उसको बचा लेते हो जो मौत नहीं छीन सकेगी। तब मौत तुम्हारे सामने दीन-हीन खड़ी हो जाती है। तब मौत तुमसे कुछ भी नहीं ले सकती। इसलिए संन्यासी मरता नहीं, सिर्फ संसारी मरता है। संन्यासी तो इस छुद्र जीवन से और विराट जीवन में प्रवेश करता है। सिर्फ संसारी मरता है, संन्यासी नहीं मरता । इसलिए हम इस देश में संन्यासी की कब्र को समाधि कहते हैं, कब्र नहीं कहते। साधारण आदमी की कब को समाधि नहीं कहते। वह तो अभी संसार चला रहा होगा - कहीं और चला रहा होगा। यहां मरा तो कहीं और पैदा हुआ। संन्यासी की मृत्यु समाधि है। क्योंकि वह स्वेच्छा से मर गया, उसने सब छोड़ दिया। और जब मैं तुमसे कहता हूं छोड़ दो तो मेरा मतलब यह नहीं है कि तुम भाग जाओ । मेरा मतलब है, भीतर से पकड़ छूट जाए।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy