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________________ मैंने किया। जिस दिन तुम विचार नहीं करते, तुम विचार छोड़ ही देते हो, शून्य हो जाते हो, बांस की पोंगरी हो जाते हो, उस दिन जो होता है वह अस्तित्व कर रहा है, तुम नहीं कर रहे हो। फिर तुम्हारा कृत्य तो होता है, लेकिन तुम्हारे कारण नहीं होता। तम निमित्तमात्र, उपकरणमात्र।। यह जो उपकरणमात्र होने की दशा है, यही जीवनमुक्त की दशा है। अष्टावक्र कहते हैं, ज्ञानी भी कर्म करता और कर्म करते हुए भी नहीं करता। देखता और नहीं देखता। बोलता और नहीं बोलता। क्या मतलब हुआ? इतना ही मतलब हुआ कि ज्ञानी अपनी तरफ से कुछ चेटा नहीं करता, जो अस्तित्व चाहता है, हो जाने देता है। ज्ञानी अस्तित्व के मार्ग में अवरोध नहीं बनता, बस। उसका समर्पण समग्र है। न वह अपनी तरफ से करता है और न अपनी तरफ से रोकता है। जो होता है, होने देता है। प्रभु-मर्जी। अगर भक्त हुआ तो कहेगा, प्रभु -मर्जी। अगर ध्यानी हुआ, तो कहेगा, समस्त का प्रवाह, ताओ, तथाता। ये नाम के ही भेद हैं। पांचवां प्रश्न : मैं बूढ़ा हुआ जा रहा हूं फिर भी संन्यास का साहस नहीं जुटा पाता हूं? अब क्या करूं? मन में खोजो। बुढ़ापा शरीर पर आ गया होगा, मन अभी भी राग-रंग में उलझा होगा। शरीर जराजीर्ण हो गया होगा, मन अभी भी नहीं जागा है। मन अभी भी सोया है। अभावतुल्य ओ, प्यार की तिलिस्म उपलब्धियो यहां हूं मैं यहां फिर मुझे खोजो मेरे गाते हुए इरादों में मनाओ मेरी आशाओं को मनाओ कि अभी न रूठे अभी बहुत कुछ है जिंदगी के वादों में आखिर तक आदमी सोचता चला जाता है, अभी कुछ और भोग लें, अभी कुछ और भोग लें। अभी बहुत कुछ है
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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