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________________ और परंपरा को बचायेंगे। परंपरा अष्टावक्र की नहीं, अष्टावक्र के पीछे आये हुए लोगों ने बनाई है। मैं उन सबको पोंछे डाल रहा हूं, जिन्होंने परंपरा बनाई है। __ कोई सदगुरु परंपरा नहीं बनाता, पर परंपरा बनती है, वह अनिवार्य है। उस परंपरा को बार-बार तोड़ना भी उतना ही अनिवार्य है। इसलिए समझना: परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवन है जीवनदायक है जैसे भी हो, ध्वंस से बचा रखने के लायक है परंपरा में दबा हुआ शाश्वत भी पड़ा है। इस कूडे -करकट में हीरे भी पड़े हैं। परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवन है जीवनदायक है जैसे भी हो, ध्वंस से बचा रखने के लायक है है क्या परंपरा? दो बातों का जोड़. परम ज्ञानी का अनुभव और अज्ञानियों का परम ज्ञानी के आसपास इकट्ठा हो जाना। परम ज्ञानी का शाश्वत को पकड़कर समय में उतारना और अज्ञानियों की समझ। नासमझी है उनकी समझ। उस नासमझी में अज्ञानियों ने जैसा समझा वैसी लकीरों का निर्मित हो जाना। जैसे रोशनी उतरे और अंधे आदमी की आंखों पर नाचे, अंधा आदमी कुछ धारणा बनाये। उस धारणा से परंपरा बनती है। वह जो रोशनी उतरी, वही शास्त्र है। और परंपरा में दोनों बातें मिश्रित हैं। आंखवालों की बातें मिश्रित हैं, अंधों की टीकायें, व्याख्यायें मिश्रित हैं। अंधों की व्याख्याओं को अलग करना है। पानी का छिछला होकर समतल में दौडना एक क्रांति का नाम है लेकिन घाट बाधकर पानी को गहरा बनाना यह परंपरा का काम है। परंपरा और क्रांति में संघर्ष चलने दो आग लगी है तो सूखी टहनियों को जलने दो मगर जो टहनियां आज भी कच्ची और हरी हैं उन पर तो तरस खाओ मेरी एक बात तुम मान जाओ कुछ टहनियां ऐसी हैं जो सदा हरी हैं, जो कभी सूखती ही नहीं हैं। जो सूख जाये वह आदमी का है; जो कभी न सूखे वही परमात्मा का है। जो कुम्हला जाये, क्षणभंगुर है, सीमा है जिसकी, उसका कोई बड़ा मूल्य नहीं। लेकिन क्षण में भी तो शाश्वत झांकता है। बुलबुले में, पानी के क्षणभंगुर बुलबुले में भी तो अस्तित्व झलक मारता है। बदलिया कितनी ही घिरी हों, बदलियों के पीछे नीला आकाश
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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