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________________ हैं? दिनांक 26 जनवरी, 1977; श्री ओशो आश्रम, कोरे गांव पार्क, पूना । पहला प्रश्न : परंपरा और क्रांति - (प्रवचन - पहला) आप क्रांतिकारी हैं, फिर आप परंपरागत प्राचीन शास्त्रों को क्यों पुनरुज्जीवित करने में लगे क्योंकि सभी शास्त्र क्रांतिकारी हैं। शास्त्र परंपरागत होता ही नहीं। शास्त्र हो तो परंपरागत हो ही नहीं सकता। शास्त्र के आसपास परंपरा बन जाये भला, शास्त्र तो सदा परंपरा से मुक्त है। शास्त्र के पास परंपरा बन गई, उसे तोड़ा जा सकता है। शास्त्र को फिर-फिर मुक्त किया जा सकता है। शास्त्र कभी बासा नहीं होता, न पुराना होता है, न प्राचीन होता है। क्योंकि शास्त्र की घटना ही समय के बाहर की घटना है, समय के भीतर की नहीं । अष्टावक्र आज भी वैसे ही नित नूतन हैं, जैसे कभी रहे होंगे, और सदा नित नूतन रहेंगे। यही तो शास्त्र की महिमा है- शाश्वत, सनातन और फिर भी नित नूतन | ही, धूल जम जाती है समय की। तो धूल जम जाने के कारण कोई दर्पण को थोड़े ही फेड देता है! धूल को झाड़ू देता है। यही कर रहा हूं। जमी धूल को झाड़ू रहा हूं| दर्पण तो वैसा का वैसा है। ये दर्पण ऐसे नहीं जो मिट जायें, जराजीर्ण हो जायें । ये चैतन्य के दर्पण हैं। ये आकाश जैसे निर्विकार दर्पण हैं। बदलिया घिरती हैं, आती हैं, जाती हैं, आकाश तो निर्मल ही बना रहता है। तो पहली बात कोई शास्त्र परंपरा नहीं है। शास्त्र के आसपास परंपरा निर्मित होती जरूर। तो परंपरा को तोड़ने का उपाय कर रहा हूं। शास्त्र को बचाना और परंपरा को तोड़ना, यही मेरी चेष्टा है। शास्त्र पर और लोग भी बोलते हैं लेकिन फर्क समझ लेना। वे परंपरा को बचाते हैं और शास्त्र को तोड़ते हैं। मैं शास्त्र को बचाता और परंपरा को तोड़ता हूं। शास्त्र पर बोलने भर से कुछ नहीं सिद्ध होता कि क्या काम भीतर हो रहा है। कुछ हैं जो धूल को बचाते हैं, दर्पण को तोड़ते हैं। वे भी शास्त्र पर बोलते हैं, मैं भी शास्त्र पर बोल रहा हूं, लेकिन दर्पण को बचा रहा हूं, धूल को तोड़ रहा हूं। इसलिए तुम ऐसा मत समझ लेना कि पुरी के शंकराचार्य बोलते तो वही मैं बोल रहा हूं अष्टावक्र की गीता पर पुरी के शंकराचार्य भी बोल सकते हैं, लेकिन मौलिक भेद यहां होगा. शास्त्र को मिटायेंगे
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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