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________________ है, मन सारे विचारों का संग्रहीत प्रवाह। ऐसा ही, जैसे कोई पूछे कि जंगल और वृक्ष में क्या भेद है? तो हम कहेंगे, सारे वृक्षों का जोड़ जंगल है। अगर तुम एक-एक वृक्ष को अलग करते जाओ तो ऐसा नहीं है कि जब तुम सब वक्ष अलग कर लोगे तो पीछे जंगल बचेगा। कुछ भी नहीं बचेगा। बड़ी पुरानी बौद्ध कथा है। मिलिंद नाम के यूनानी सेनापति ने बौद्ध भिक्षु नागसेन का निमंत्रण किया है, राजदरबार में। और वह बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है कि नागसेन आए। और नागसेन आया। उसे रथ भेजा था, वह रथ पर बैठकर आया। और जब नागसेन उतरा-तों नागसेन की देशनाओं में सबसे बड़ी देशना थी वह यही थी कि मनुष्य है नहीं, केवल जोड़ है-उतरते से ही, नागसेन जब उतरा और मिलिंद ने उसका स्वागत किया तो मिलिंद ने कहा, भिक्षु नागसेन, हम आपका स्वागत करते हैं, आप राजमहल में पधारें। तो नागसेन ने कहा, मैं आ तो गया हूं, लेकिन यह निवेदन कर दूं कि मैं हूं नहीं| नागसेन सिर्फ एक नाम मात्र है, जैसे जंगल। कुछ चीजों का जोड़। शरीर, विचार, आदतें, संस्कार, इन सबका जोड़। मैं हूं नहीं। मिलिंद तो यूनानी था मीनांडर उसका यूनानी नाम है, मिलिंद भारतीय नाम। सिकंदर जिन सेनापतियों को भारत छोड़ गया था, उसमें से एक सेनापति। यूनानी तो अरस्तू के अनुयायी हैं तर्क पर उनका बड़ा भरोसा है। उसने कहा, यह क्या फिजूल की बात करते हैं कि आप आ गये और हैं भी नहीं। हैं भी नहीं तो आए कैसे? हैं भी नहीं तो आया कौन? मगर नागसेन तो बड़ा अदभुत व्यक्ति था। उसने कहा कि ऐसा करें, भीतर हम पीछे जाएंगे, यह निर्णय पहले हो ले। यह रथ है? मिलिंद ने कहा, रथ है। तो उसने कहा, नौकरों को आज्ञा दें घोड़े अलग कर लें। घोड़े अलग कर लिये गये। उसने पूछा, अब भी रथ है? मिलिंद ने कहा, अब भी रथ है। उसने कहा, अब चक्के भी अलग कर लें। चक्के भी अलग हुए तब मिलिंद थोड़ा चिंतित हुआ| उसने पूछा, अब भी रथ है? उसने कहा, अब है तो मगर अब हालत खराब हुई जा रही है रथ की अब यह नाम को ही रथ है। अब और चीजें निकाल ली तो सब गड़बड़ हो जाएगा। तो उसने कहा, मैं जब सब चीजें निकाल लूंगा तो पीछे रथ बचेगा? मिलिंद को बात समझ में आयी। रथ तो केवल जोड़ है। और नागसेन ने कहा, तू बोल, रथ आया कि नहीं। और रथ है या नहीं? मैं तुझसे कहता हूं, रथ आया भी और रथ है भी नहीं। रथ केवल जोड़ है। संज्ञा मात्र। मन केवल जोड़ मात्र है। मन कुछ है नही रथ-पहिये अलग कर लो, घोड़े अलग कर लो, धुरी अलग कर लो, अस्थिपंजर तोड़कर अलग - अलग कर लो, तो पीछे कुछ बचता नहीं। तुम पूछते हो, मन और विचार में क्या फर्क है? बस वही फर्क है जो जंगल और वृक्ष में। वृक्षों जैसे हैं विचार। और वृक्षों का जो संग्रहीत जमघट है, उसका नाम मन है। इसीलिए तो हम कहते हैं, जो व्यक्ति धीरे - धीरे विचारों का त्याग करता जाए, निर्विचार होता जाए, अंतिम घड़ी में अ-मन की दशा को उपलब्ध हो जाता है, नो माइंड। 'और कल आपने कहा कि विचार से ही कृत्य बनते हैं।' निश्चित ही। विचार बीज है। विचार आधा कृत्य है। तुम्हारे भीतर एक विचार उठा, करने की
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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