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________________ है। जो जवान आगे-पीछे देखने लगे, उसके जीवन में विवेक का जन्म होता है। और जो का आगे देखने लगे, वह मृत्यु के पार हो जाता है, अमृत को पा लेता है। देखने की क्षमता तो वही है, दिशा बदलो। बुढ़ापे में बच्चे जैसे हो जाओ। यही तो जीसस कहते हैं कि जो बच्चों जैसे हैं वे उपलब्ध हो जाएंगे प्रभु को। यही तो अष्टावक्र कहते हैं, बालवत हो जाओ। क्या मतलब है? यह बालवत शब्द के इतने मतलब हैं कि जिसका हिसाब नहीं । उन बहुत मतलबों में एक मतलब यह भी है- अलग -- अलग बार मैं अलग- अलग मतलब तुमसे कहता हूं, क्योंकि वह सब मतलब इस छोटे से शब्द में समाए हैं । यह भी मतलब है - बच्चे जैसे हो जाओ। अगर कोई का बच्चे जैसा हो जाए तो उसका अर्थ हुआ, का आगे देखने लगा। पीछा तो गया, गया सो गया। बिसर ! सो बिसरा, अब उसको क्या समेटना ? अब वह आगे देखने लगा। अगर कोई का बच्चे - जैसा आगे देखने लगे तो मौत के पार देख लेगा, अमृत को उपलब्ध हो जाएगा। अगर कोई बच्चा के जैसा पीछे देखने लगे तो वह जन्म के पार देख लेगा । और अतीत जन्मों की स्मृति को उपलब्ध हो जाएगा। अगर कोई जवान आगे-पीछे देख ले तो वासना - मुक्त हो जाएगा, संन्यस्त हो जाएगा। आगे-पीछे देख ले तो पाएगा, क्या रखा है? न पीछे कुछ था - जब तुम छोटे बच्चे थे तो वासना का क्या मूल्य था? महत्वाकांक्षा का क्या मूल्य था? धन का क्या मूल्य था? पद-प्रतिष्ठा का क्या मूल्य था? अगर जवान पीछे देख ले और आगे देख ले - एक दिन फिर कुछ मूल्य न रह जाएगा, फिर मौत आएगी सब पोंछ जाएगी-न पहले कुछ मूल्य था, न आगे कुछ मूल्य है, तो अभी मूल्य कैसे हो सकता है! तो धोखा हो रहा है। क्रांति घटती है जब तुम सामान्य से हटकर कुछ करने में सफल हो जाते हो। रूप ढला रस बहा संग लगा रंग रहा सब ढल जाता है, सब नष्ट हो जाता है, लेकिन रंग लगा रह जाता है। जैसे बगीचे से गुजरे, बगीचा तो गुजर गया लेकिन वस्त्रों में थोड़ी बगीचे की सुगंध अटकी रह जाती है। ऐसी स्मृतियां हैं। खिलौने टूटते हैं, मरते नहीं मां ने कहा, पर बालक रोता रहा बच्चे का तो खिलौना भी टूट जाए तो वह रोता है। जैसे कोई मृत्यु घट गयी। बच्चे का खिलौना टूट जाए तो रोता है, और ज्ञानी वस्तुतः मौत घट जाए, खुद भी मर जाए तो भी नहीं रोता है, आंख पर आंसू नहीं आते हैं। बच्चे को खिलौने में भी लगता है मौत घट गयी और ज्ञानी को वास्तविक मौत में भी लगता है-मौत कैसे घट सकती है ! रति
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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