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________________ पड़ेगी, तब तुम अचानक पाओगे वे काम नहीं आतीं। अपनी ही आंख ठीक करनी जरूरी है। बुद्ध ने आखिरी वचन अपने विदा के समय में कहा, ' अप्प दीपो भव।' अपने दीये खुद बनो। क्योंकि जब बद्ध मरने लगे और शिष्य रोने लगे तो बद्ध ने कहा तम क्यों रोते हो? तो उन्होंने कहा, आप चले अब हमारा क्या होगा ग्र बुद्ध ने कहा, मेरे होने से तुम्हारा क्या हुआ था? मैं था तो क्या हुआ? मैं जा रहा हूं तो क्या खो रहा है अब इतनी ही बात खयाल रखो, जो मैंने जिंदगी भर तुमसे कही कि अपनी आंखें खोज लो। अब तक तो तुमने नहीं सुनी, अब सुन लो! क्योंकि अब मैं जा रहा हूं, अब कहनेवाला भी जा रहा है। अब मैं तुमसे लौट-लौटकर नहीं कहूंगा अपनी आंखें खोज लो। अब तुम्हें पक्का पता चलेगा। अगर अभी तुम मेरे पीछे सरक सरक कर चलते रहे, तुम्हें यह भ्रांति रही कि जैसे तुम्हारे पास आंखें हैं, अब मेरे जाने पर तुम्हें असलियत पता चल जाएगी। जिंदगी की दीवालें जगह-जगह तुम्हें रुकावट डालेंगी। जगह-जगह तुम गड्डों में गिरोगे। अब तो अपनी आंख खोज लो। तो पहली बात, तुमने शास्त्र पढ लिये हैं, शास्ताओं को सुन लिया, सुंदर वचन कंठस्थ कर लिये, लेकिन यह तुम्हारा अनुभव नहीं है। दूसरी बात, आदमी अतीत की ओर देखता है, उसके पीछे महत्वपूर्ण कारण हैं। बच्चे भविष्य की ओर देखते हैं, जवान वर्तमान की ओर देखते हैं, के अतीत की ओर देखते हैं। जिस दिन तुम अतीत की ओर देखने लगो, समझना कि के होने लगे। बच्चों का लक्षण है, भविष्य की ओर देखना। बच्चों का कोई अतीत तो होता ही नहीं, देखेंगे भी तो क्या खाक देखेंगे। पीछे तो कुछ है नहीं। जो कुछ है, आगे है। अभी जिंदगी होनी है। अभी हुई तो नहीं। अभी कोई कहानी तो नहीं, बच्चे से कहो कि तुम्हारी आत्मकथा लिखी तो क्या खाक लिखेगा! वह कहेगा, आत्मकथा यानी क्या? अभी कुछ हुआ ही नहीं तो कथा कहां से! अभी कोई घटना ही कहां घटी! जवान आदमी वर्तमान में देखता। जवानी ऐसा मदमस्त करती है कि कहीं और कहा देखे! अभी तो भोग लो, कल बचा न बचा। का आदमी पीछे की तरफ देखने लगता है, क्योंकि अब आगे तो मौत है और कुछ भी नहीं, अंधेरा। पीछे बहुत कुछ हुआ है आत्मकथा है, बड़ी घटनाएं घटी हैं-राग-रंग भी थे, सुख-दुख थे, लंबी यात्रा है। वह पीछे का मार्ग लौट-लौट कर देखने लगता है। तो पहली बात तुमसे कहना चाहता हूं अगर लौट लौट कर अतीत की ओर देखने लगे हो तो तुम के हो रहे हो। यह वार्द्धक्व का अनिवार्य लक्षण है। बूढ़ा आदमी शरीर से नहीं होता, बूढ़ा आदमी चित्त से होता है। और चित्त का यह लक्षण है, जब आदमी का होने लगता है तो पीछे देखता है। के बैठे -बैठे पीछे की स्मृतियों में डबे रहते हैं। जो-जो उन्होंने किया, जो-जो हुआ। और जो -जो किया उसको खूब बढा-बढ़ाकर देखते हैं, ऐसा भी नहीं कि कुछ उतना ही देखते हैं जितना हुआ अब जब देख ही रहे हैं और अकेले ही देख रहे हैं और अपनी ही फिल्म है और अपना ही पर्दा है और अपने ही दर्शक हैं, फिर क्या कंजूसी करनी! खूब बढ़ा-बढ़ाकर देखते हैं। और उसमें डूबते हैं। मौत करीब आने लगी, अब तुम्हारे पास जिंदगी के नाम पर सिर्फ पुरानी स्मृतियों का ढेर रह गया है। और तुम्हारे पास अब एक ही उपाय मालूम होता है जिंदा बने रहने का कि इसको पकड़
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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