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________________ सूत्र दे रहा हूं यह तंत्र है। अक्षर से अक्षर तक की यात्रा तंत्र। श्रवणमात्रेण| न कोई विधि, न कोई मंत्र। मात्र सुन लिया, हो गया। तीनों तरह के लोग यहां हैं। कुछ तांत्रिक, कुछ यांत्रिक, कुछ यांत्रिक। तीनों तरह के लोग यहां हैं। तीनों के लिए बोल रहा हूं। जब भक्ति पर बोलता हूं तो मंत्र पर बोलता हू जब पतंजलि और योग पर बोला तो यंत्र पर बोला। अष्टावक्र पर बोल रहा हूं या लाओत्सु पर बोला तो तंत्र पर बोला बोलना जरूरी है क्योंकि तुमने अभी सुना नहीं। तुम सुन लो तो मेरा काम पूरा हो जाये। लेकिन जिसने पूछा है वह शायद मेरे बोलने से परेशान होता होगा। उसे कुछ अड़चन होगी। दूसरे भी हैं जिन्हें बोलने में रस आ रहा है, जो सुनने में रसमग्न हैं, वे कहते हैं और बोलूं। जिसने पूछा है उसे कुछ बेचैनी होगी। शायद मेरे शब्द उसकी सुरक्षाओं को तोड़ते होंगे। शायद मेरे शब्द उसके सिद्धातों को डांवाडोल करते होंगे। शायद मेरे शब्दों के कारण उसकी रात की नींद खराब होती होगी। शायद मेरे शब्दों के कारण उसकी जो मान्यतायें हैं वे उखड़ रही होंगी। उसे कुछ अड़चन है। तुम अपनी अड़चन समझो। बजाय यह पूछने के कि मैं क्यों बोलता हूं तुम यह समझो कि मेरे बोलने से तुम बेचैन क्यों हो? क्योंकि वही तुम्हारा... तुम्हारी सीमा है। वही तुम्हारी समस्या है। मेरे बोलने का क्या संबंध है भू: तुम्हें नहीं सुनना है, मत सुनो। मैं तुम्हारे घर आकर नहीं बोलता हूं। तुम यहां आकर मुझे सुनते हो तुम मत आओ। तुम्हें सुनने में कुछ अड़चन होती है, कुछ पीड़ा होती है, कोई काटा चुभता है, मत आओ। लेकिन यही मसीबत है। आना भी पड़ता है। सनन है। सुनने से मुसीबत भी खड़ी होती है। क्योंकि सुनने से क्रांति निर्मित होती है। पुराने को छोड़ना पड़ेगा। सुन लिया तो तुम मुश्किल में पड़े। अब तुम बिना सुने भी नहीं रह सकते हो और आगे सुनने में भी डरते हो। तो तुम मुझसे ही प्रार्थना कर रहे हो कि आप ही कृपा करके बोलना बंद कर दें। नहीं, मैं तुम्हारी न सुनूंगा जब तुम मेरी नहीं सुन रहे तो मैं तुम्हारी सुनूं तुम मेरी सुन लो तो मैं भी तुम्हारी सुन लू तुम अगर सुन लो जो मैं कह रहा हूं तो मुझे बोलने की जरूरत न रह जाये। फिर बिना बोले भी काम हो जाये। फिर शून्य से भी बात हो जाये। फिर अक्षर से अक्षर, शून्य से शून्य, मौन से मौन का भी मिलन हो जाये। सुन लो तुम तो वे भी हैं जो सुनते रहना चाहते हैं। वे भी हैं जो मैं चला जाऊंगा तो पछतायेंगे। वे भी हैं जो मैं चुप हो जाऊंगा तो रोयेंगे। वे तुम्हारे बोल, वे अनमोल मोती वे रजत क्षण, वे तुम्हारे आंसुओ के बिंदु वे लोने सरोवर, बिंदुओं में प्रेम के भगवान का संगीत भर-भर बोलते थे तुम, अमर रस घोलते थे तुम हठीले पर हृदय–पट तार हो पाये कभी मेरे न गीले न, अजी मैंने सुने तक भी नहीं प्यारे तुम्हारे बोल
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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