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________________ जाओ, ओ मेरे शब्दों के मुक्तिसैनिको, जाओ बोलता हूं कि तुम मुक्त हो सको बोलता हूं कि तुम बंधे हो न मालूम कितने प्रश्नों की जंजीरों से। बोलता हूं कि वे जंजीरें टूट सकें। किसी उत्तर की तुम्हें झलक भी दिखाई पड़ जाये। तुम्हारी आंख रा आकाश की तरफ उठ जाये। तुम जमीन पर गड़ाये चल रहे हो जन्मों-जन्मों से। तुम भूल ही गये हो कि आकाश भी है। बोलता हूं कि तुम्हें याद आ जाये कि तुम्हारे पास पंख हैं जिनका तुमने उपयोग ही नहीं किया तुम उड़ सकते थे और नहीं उड़े। तुम उड़ने को ही बने थे और तुम नहीं उड़े। उड़कर ही तुम्हारी नियति पूरी हो सकती थी। और तुम जमीन पर घसिट रहे हो। तुम घसिटने के लिए बने नहीं हो, आकाश ही तुम्हारा गंतव्य है, लक्ष्य है, इसलिए बोलता हूं। अक्षर से क्षर तक की यात्रा यंत्र क्षर से अक्षर तक की यात्रा मंत्र अक्षर से अक्षर तक की यात्रा तंत्र जो बोल रहा हूं उसमें कुछ यंत्र है जो बोल रहा हूं उसमें कुछ मंत्र है और जो बोल रहा हूं उसमें कुछ तंत्र है। उसमें तीनों हैं। फिर से सुनो अक्षर से क्षर तक की यात्रा यंत्र वह जो अक्षर है, जो दिखाई भी नहीं पड़ता, जिसकी कोई सीमा नहीं है, जो शाश्वत-सनातन है, उसको जब हम सीमा में उतारते हैं, शब्द में बांधते हैं, तो यंत्र पैदा होता है। विज्ञान वही है। ____ मैं तुमसे जो बोल रहा हूं उसमें कुछ विज्ञान है उसमें कुछ विधियां हैं। उन विधियों को तुम पकड़ लो अक्षर से क्षर तक की यात्रा यंत्र। अगर तुम उन विधियों को पकड़ लो, उन सीढ़ियों को पकड लो तो फिर तुम क्षर के सहारे चढ़कर पुन अक्षर तक पहुंच सकते होउसमें कुछ विधियां हैं। क्षर से अक्षर तक की यात्रा मंत्र और जब क्षर में अक्षर तक जाना होता है तो जिनसे सहारा मिलता है उन्हीं का नाम मंत्र है। जो मैं बोल रहा हूं उसमें कुछ मंत्र हैं। इन मंत्रों को अगर तुम समझ लो तो तुम वापिस वहां पहुंच जाओगे जहां से आये हो। मूल स्रोत तक पहुंच जाओगे और मैं जो बोल रहा हूं उसमें कुछ तंत्र है। अक्षर से अक्षर तक की यात्रा तत्र यह सबसे ज्यादा कठिन बात है तंत्र। यंत्र भी समझ में आता-ऊपर से नीचे उतरना यंत्र। नीचे से ऊपर जाना मंत्र। ऊपर से ऊपर जाना तंत्र। पृथ्वी से आकाश की तरफ जाना मंत्र, आकाश से पृथ्वी की तरफ आना तंत्र। आकाश से और बड़े आकाशों की तरफ जाना, पूर्णता से और बड़ी पूर्णताओं की तरफ जाना, शून्य से और महाशून्यों की तरफ जाना तंत्र। तीनों हैं। किन्हीं के काम के लिए यंत्र है अभी, विधि जरूरी है। उनके लिए विधि दे रहा हूं। किन्हीं के लिए मंत्र जरूरी है। उनके लिए विधि आवश्यक नहीं, प्रार्थना काफी है, भाव काफी है। फिर कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें न प्रार्थना की जरूरत है, न ध्यान की विधियों की जरूरत है। उनके लिए अष्टावक्र के
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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