SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे जो पाएंगे शराब वे ही जानेंगे मजा । यह मजा पाकबाज क्या जानें जिन्होंने कभी शराब पी ही नहीं, वे तो क्या मजा जानेंगे! पूछना हो तो उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्होंने पीया है। सच तो यह है, उनसे भी पूछना क्या चाहिए, उनके साथ पीकर देखना चाहिए। जैसा मैं निरंतर कहता हूं, यहां तो कोशिश यही चल रही है कि तुम किसी तरह डूबो परमात्मा में। तुम पीओ परमात्मा की शराब। यहां कोई सिद्धात नहीं समझाए जा रहे हैं, यहां तो सत्य की शराब ढाली जा रही है। इसलिए हिम्मतवरों के लिए ही निमंत्रण है। कमजोर और कायरों की यहां कोई जगह नहीं है। जिन्हें धर्म एक औपचारिकता है, उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं। जिनके लिए धर्म एक जीवंत निमंत्रण है, चुनौती है, बस उनके लिए । अच्छा हुआ कि तुम आ गये अच्छा हुआ कि इस झंझट में पड़ गये। अच्छा हुआ कि यह पागलपन तुम्हारे सिर पर चढ़ा जा रहा है। अच्छा हुआ कि यह खुमारी तुम्हें आने लगी तुझको बरबाद तो होना था बहरहाल खुमार कर ना कि उसने तुझे बरबाद किया आदमी को बरबाद तो होना ही है। चाहे धन के पीछे हो, पद के पीछे हो, बरबाद तो होना ही है। अगर परमात्मा के पीछे हो लिए, तो अच्छा! नाज कर नाज कि उसने तुझे बरबाद किया तुझको बरबाद तो होना था बहरहाल खुमार यहां मौत तो आने को है ? जाने को तो सब है ही, बचेगा तो कुछ भी नहीं, अगर रारमात्मा के चरणों में सब छोड़ा, अगर यह प्रभु का नशा लग जाए, अगर मंदिर तुम्हारी मधुशाला बन जाए, तो इससे बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं । एक दिन तुम कहोगे - इसका रोना नहीं है क्यों तुमने किया दिल बरबाद इसका गम है कि बहुत देर में बरबाद किया एक दिन जरूर तुम कहोगे कि क्यों इतनी देर हो गयी, क्यों इतनी देर तक न आया ! कैसे इतनी देर अटका रहा! और सब तरह का प्रेम एक तरह का पागलपन है। और परमात्मा का प्रेम तो सबसे बड़ा पागलपन है। और सब तो छोटे -छोटे पागल हैं। धन के पागल की क्या बिसात! लेकिन जो मोक्ष के लिए पागल हुआ है, उसका पागलपन तो अनंत है। उतना ही अनंत जितना मोक्ष है। धन पानेवाला तो शायद किसी दिन हग्न पा भी लेगा और पागलपन से छुटकारा हो जाएगा, लेकिन परमात्मा को जो पाने चला है यह तो पा पा कर भी चूकता रहेगा। यह तो पा पा कर भी फिर पाएगा कि और पाने को शेष है। यह पागलपन तो छूट जानेवाला नहीं है। यह पागलपन तो अनंत है। हमसे पहले भी मुहब्बत का यही अंजाम था कैस भी नाशाद था फरहाद भी नाकाम था
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy