SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर पाया। आत्मविश्लेषण तो पश्चिम ने बहुत किया है। पश्चिम की सारी विधियां आत्मविश्लेषण की हैं। और आत्मविश्लेषण और साक्षी में मौलिक भेद है। साक्षी का अर्थ है, अब हम कुछ न करेंगे, सिर्फ देखेंगे, मात्र देखेंगे। आख भर होकर रह जाएंगे। आख में जरा-सा भी हलन-चलन न होने देंगे। बुरा है विचार कि भला है, इतनी भी रेखा न खींचेंगे। शभ और अशभ का भी चिंतन न करेंगे विश्लेषण तो बहुत दूर उठेगा विचार तो देखते रहेंगे, कोई निर्णय न लेंगे। हो, न हो; उठे, न उठे; ऐसा पक्षपात भी न करेंगे। साक्षी का क्या पक्षपात! चोरी का विचार उठा तो साक्षी में ऐसे ही तुम जागकर देखते रहोगे जैसे मोक्ष का विचार उठा, कोई भेद नहीं है। इसलिए तो अष्टावक्र बार-बार कहते हैं, शुभ और अशुभ के पार, शोभन-अशोभन के पार, साधु- असाधुता के पार, संसार और मोक्ष के पार, भोग और योग के पार। वह जो अतिक्रमण करनेवाली चेतना की दशा है, उसमें कोई विश्लेषण नहीं। क्योंकि विश्लेषण तो मन से होता है। विश्लेषण की प्रक्रिया तो मन की ही प्रक्रिया है। यह तो मन का ही खेल है। यह तो तुम मन में और बुरी तरह उतरते जाओगे| यह तो चूकना है, पहुंचना नहीं। मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐं रिंद कोई गिरते हुए पकड़ेगा न बाजू तेरा मैकदा है यह..... ये विचार तो शराब की तरह भुला लेने वाले हैं। शराबघर है। मन मूर्छा है, बेहोशी है। मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐ रिंद विचार को जब पीने चलो तो बहुत सोच-समझ कर। ओंठ से लगाया कि खतरा है। क्योंकि एक विचार के पीछे दूसरा आ रहा है। एक श्रृंखला है। ऐसी श्रृंखला, जिसका कोई अंत नहीं। मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐ रिंद कोई गिरते हुए पकड़ेगा न बाजू तेरा और अगर विचारों में गिरे, तो फिर कोई पकड़ने वाला नहीं है। क्योंकि जो पकड़ सकता था, वही गिर गया। जो संभल सकता था, वही गिर गया। साक्षी है निर्विचार दशा। विश्लेषण नहीं, संश्लेषण नहीं, चिंतन नहीं, मनन नहीं, मात्र जागरण। बोध मात्र। कभी-कभी तुम प्रयोग करो। कभी-कभी आख बंद कर लो और अपने मन को कहो कि तू जो चाहे कर। तुझे जो विचार उठाने हैं, वह उठा। संकोच न कर, बरे - भले की भी फिक्र मत कर, अब तक दबा दबा रहा-यह उठा, यह न उठा-अब तू उठा जो तुझे उठाना है। सब लहरें उठा। हम तो तट पर बैठ गये, तटस्थ हो गये। हम तो कूटस्थ हो गये। हम तो बैठकर देखेंगे तेरी लीला। तू नाच। हम देखेंगे। मन से कह दो कि तू नाच और भरपूर नाच और जैसा नाचना है वैसा नाच-सुंदर, असुंदर; श्लील, अश्लील, जैसा भी, हम देखेंगे। और तुम बड़े चकित हो जाओगे। जैसे ही तुम यह कहकर बैठोगे देखने को, तुम पाओगे मन चलता ही नहीं, सरकता ही नहीं। मा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy