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________________ जो बच रहा वही संतत्व है। अब जो बच रहा वही परम शुद्धि, साधुता या जो नाम तुम्हें प्रीतिकर हो। थे यहां मधुकलश सारे विष भरे असलियत मालूम हुई जब पी लिये देह पर तो लग गये टीके मगर रह गये सब घाव मन के अनसिये जहां-जहां तुम्हें दिखायी पड़ रहे हैं मधुकलश, पी लोगे तब मालूम पड़ेगा जहर था। फिर देह पर लगी चोटें तो जल्दी भर जाती हैं, मन पर पड़ी चोटें बहुत मुश्किल हो जाती हैं घाव पर तो टाके लग जाते हैं शरीर पर, लेकिन मन पर टाके भी नहीं लग पाते। देह पर तो लग गये टीके मगर रह गये सब घाव मन के अनसिये थे यहां मधुकलश सारे विष भरे असलियत मालूम हुई जब पी लिये तब बहुत देर हो जाती है। लेकिन और कोई उपाय नहीं है, क्योंकि पीकर ही तो अनुभव आता है। तुम सब जहर पीए बैठे हो। तुम सब नीलकंठ हो। सब के कंठों में जहर है। आकंठ जहर से भरे हो। मगर अभी तक होश नहीं आया। इतना कठिन जीवन जीते हो, फिर भी होश नहीं आता, चमत्कार है! इतने दुख में जीते हो, फिर भी होश नहीं आता। इतनी पीड़ा भोगते हो, काटे -ही-काटे, फिर भी न-मालूम किन सपनों के फूलों की आशा में जीए चले जाते हो! वे फूल कभी खिलते नहीं, मिलते नहीं, मिलते सदा काटे हैं, आशा सदा फूलों की लगाए रखते हो। दौड़-धाप में, आपा-धापी में होश ही नहीं आता, खयाल ही नहीं आता हम क्या कर रहे हैं! थोड़ा बैठकर थोड़ा विमर्श करो। थोड़ा अपनी स्थिति पर विचार करो। उसमें जो-जो व्यर्थ हो, काट दो। जो -जो सार्थक हो, बचने दो। तुम धीरेधीरे पाओगे, जैसे -जैसे व्यर्थ कटने लगा, तो व्यर्थ आलस्य भी कट जाएगा और व्यर्थ कर्मठता भी कट जाएगी। धीरे – धीरे तुम्हारे भीतर एक नाद बजने लगेगा। एक अपूर्व नाद! ऐसा नाद तुमने कभी सुना नहीं, वह तुम्हारे भीतर मौजूद है, वही सत्व का नाद है। उस नाद को जो उपलब्ध हो गया, उसी को संत कहो। संतुलन की परमदशा का नाम संतत्व है। 'जो सर्वत्र उदासीन है और जिसके हृदय में कुछ भी वासना नहीं है, ऐसे तृप्त हुए मुक्तात्मा की किसके साथ तुलना हो सकती है!' सर्वत्रानवधानस्य न किचिद्वासना हृदि। मुक्तात्मनो विस्तृप्तस्य तुलना केन जायते।। 'जो सर्वत्र उदासीन है और जिसके हृदय में कुछ भी वासना शेष नहीं है, ऐसे तृप्त हुए मुक्तात्मा की किसके साथ तुलना हो सकती है!' अष्टावक्र कहते हैं, वही है परम सिंहासन पर विराजमान। अतुलनीय, अद्वितीय, अपूर्व, बेजोड़। उसकी तुलना ही नहीं हो सकती किसी से। तुम्हारे सिकंदर और तुम्हारे नेपोलियन और तुम्हारे सम्राट
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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