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________________ पात्र समझा कि अपने को उड़ेला यही क्या कम है? ऐसा जब तुम्हारे भीतर भाव बने तो सदगुरु की छाया में होने का अर्थ पता चलेगा अनुभव से; और कोई उपाय नहीं है। चौथा प्रश्न : तू ही राजदा है मेरा, तुझको मेरी शरम है। तू ही वायसे - मसर्रत, तू ही दर्द, तू ही गम है जिसे चाहे तू बना दे, जिसे चाहे तू मिटा दे वह भी तेरा करम है, यह भी तेरा करम है एक बात तुझसे पूछूं? सच - सच अगर बता दे तुझे याद करके रोना, क्या यह बंदगी से कम ? कम-ज्यादा की तो बात ही नहीं, रोना ही बंदगी है। और जिस बंदगी में रोना नहीं है, सूखी-सूखी है, बंदगी पूरी नहीं है। जिस बंदगी में रोना नहीं है, मरुस्थल है। आंसुओ से ही तो मरूद्यान शुरू होता है, हरियाली आती है। जो बंदगी आंसुओ से रिक्त है, तुम झुके तो लेकिन झुके नहीं अगर आंखें आंसुओ से न भरीं तो क्या खाक झुके! तो शरीर झुक गया, हृदय न झुका। तो देह झुक गई, भावना न झुकी। जब तुम झुकोगे देह से तो वह तो कवायद है केवला लेकिन जब तुम हृदय से झुकोगे तो आंखों से आंसुओ की धार बहेगी । आंसुओ की धार दुख में ही थोड़े ही बहती है, परम सुख में भी बहती है, आनंद में भी बहती है। जब भी कोई चीज इतनी ज्यादा हो जाती है जिसे तुम सम्हाल नहीं पाते, तभी आंसुओ का सहारा लेकर बहती है। अब तुम परमात्मा के सामने झुके या सदगुरु के सामने झुके या जगत के सौंदर्य के सामने झुके, यह झुकने की घटना इतनी.. इतनी गहरी है कि अगर इससे आंखों में आंसू न आयें और तुम भीतर गदगद न हुए तो झुकना रूखा-रूखा रह गया। यह तो ऐसा ही है जैसे प्यास लगी और किसी ने खाली गिलास पी लिया। खाली गिलास से कहीं प्यास बुझेगी? गिलास भरा होना चाहिए। आंसू तो खबर लायेंगे कि तुम्हारा झुकना प्रामाणिक है। तुम औपचारिक रूप से नहीं झुके तुम सच में ही झुके। तो मैं तो रोने को ही बदगी कहता हूं। तुम्हें अगर सूरज को उगते देखकर आकाश में चांद को तिरते देखकर, सफेद बदलियों को आकाश में भटकते देखकर आंसू आ जायें तो बदगी हो गई।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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