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________________ श्वास पुकल कदंब मल्लिका वनवृंद वृदाधाम आए घनश्याम, चकित तड़ित पीत पट मंद रव वेणु बरसता सरस स्वर मंद-मंद विंदु सस्मित राका ज्यों खलपूर्ण इंदु आप गत ताप प्रमुदित चित्त घेणु जल तल सकल अभिराम आए घनश्याम वह जो तापरहित परमात्मा है-आप गत ताप-जो शीतल परमात्मा है, जो शांत परमात्मा है, प्रमुदित चित्त घेणु-जो इंद्रधनुषों की तरह है, उत्सवपूर्ण है। प्रमुदित चित्त धेणु-जो चेतना का इंद्रधनुष है, प्रमोद से भरा, आनंद-उत्सव से भरा, जल तल सकल अभिराम-जो सब रूपों में छाया है, सब तरफ वही विस्तीर्ण है, आए घनश्याम। प्रभु आता, रोज-रोज आता, तुम्हारी आंख जब तक आश्चर्य से न भरी हो, तब तक तुम्हारा मिलन नहीं हो पाता है। मैं सफल हो गया, अगर मैंने तुममें आश्चर्यभाव पैदा कर दिया। अगर मैंने तुम्हें फिर चकित कर दिया, फिर से तुम विस्मित होने लगे, लौट आया तुम्हारा बचपन फिर, फिर से तुम चौंककर देखने लगे चारों तरफ, फिर संवेदनशील हो गये, अगर मैं इतने में सफल हो गया कि तुम चकित हो गये, कि तुम चौंक गये, कि तुम विस्मय–विमुग्ध हो गये, कि आश्चर्य का अंकुर फिर तुममें फूटा, तो बस बात हो गयी। तो तुम बालवत हो गये। अष्टावक्र बालक की बहुत बात करते हैं महागीता में कि ज्ञानी बालवत। अगर बालक में कोई भी बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, तो वह उसका आश्चर्यभाव। उसकी रहस्य के प्रति जिज्ञासा। वह हर छोटी-छोटी चीजों में रहस्य देख लेता है। जहां तुम्हें कुछ भी रहस्य नहीं दिखायी पडता वहां भी रहस्य देख लेता है। तुम नाराज भी होते, तुम उससे कहते भी कि बकवास बंद कर, कुछ भी नहीं रखा है वहां। तुम्हें पता नहीं कि तुम एक अनूठी क्षमता को नष्ट कर रहे हो हर बच्चा रहस्य की क्षमता लेकर पैदा होता, लेकिन समाज, परिवार, स्कूल, शिक्षा उसके रहस्य को मार डालते। जवान होते -होते उसके रहस्य के प्राण निकल गये होते। और फिर लोग सोचते हैं कि लोग धार्मिक हो जाएं!
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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