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________________ हरित श्वेत जो उदय हुई है वह तू ऊषा मेरी आंखों पर तेरा स्वागत है वेद में ऊषा के बड़े स्तुतिगान हैं। सुबह के बड़े गीत हैं। वे नये के स्वागत में गाये गये गीत हैं। ऊषा की प्रशंसा में जो कहा गया है, वह जो नितनूतन है, उसकी प्रशंसा में कहा गया है। ऊषा तो प्रतीक है। सुबह तो प्रतीक है। नये का। नयी कोंपल का। नये वसंत का। नये रहस्य का। तुम रोज-रोज सूरज को, नये सूरज को ऊगते देखकर पुन –पुन: उसका स्वागत कर सको और पुन: -पुन: नये -नये आविष्कार कर सको रहस्य के; जहां कल चूक गये थे वहां आज न फ्लो, जहां आज चूक गये थे वहां फिर कल न चूको| और इतना है रहस्य कि तुम उघाडते जाओ, उघाडते जाओ, उघाडते जाओ, तुम कभी उघाड़ तो नहीं पाओगे। परमात्मा को जानने का यही अर्थ होता है, उतर गये उसमें, डुबकी लगा ली उसमें। एक किनारा छूट जाता है, दूसरा किनारा कभी मिलता नहीं। मझधार में ही नौका रहती सदा। इसीलिए गति है, गत्यात्मकता है, गंतव्य कोई भी नहीं है। ___ मैं तुम्हारी तकलीफ भी जानता हूं। तुम गंतव्य में उत्सुक हो मैं गति में उत्सुक हूं। मेरी और तुम्हारी बड़ी. तालमेल है नहीं। तुम उत्सुक हो कि जल्दी पहुंच जाएं अब और कितनी देर लगेगी! मैं उत्सुक हूं कि तुम चलने में मजा मे लगो और पहुंचने का रस छोड़ दो। तुम्हारी उत्सुकता है कि कब आ जाए मंजिल कि गिर पड़े और सो जाएं, मेरी उत्सुकता है कि मंजिल कभी न आए ताकि तुम अब कभी सो न पाओ, सदा जागे रहो, सदा चलते रहो-चरैवेति, चरैवेति-और ऊषा का सदा स्वागत करते रहो। प्रभु तो रोज-रोज आता, बहुत रूपों में आता। कभी किसी पक्षी के स्वर से; कभी हवा का झोंका गुजरता वृक्षों से, उसमें; कभी किसी बादल के टुकड़े में तैर आता, कभी सूरज की किरणों में, कभी सागर की लहर में, कभी किसी स्त्री की आंखों में कभी किसी बच्चे की मुस्कुराहट में कभी किसी पुरुष के रूप में; कभी किसी की शांति में, और कभी किसी के क्रोध में भी, कभी किसी की उदासी में भी। अनंत- अनंत रूपों में गीत गाता है। तुम एक दफा आश्चर्यमुग्ध हो जाओ, तुम्हारी आंख पर आश्चर्य का रंग चढ़ जाए, तो तुम्हें हर जगह दिखायी पड़ने लगेगा। तुम हर जगह उसे उघाड़ लोगे। वह किसी भी रूप में आए, तुम उसे पहचान लोगे। आए घनश्याम, श्लथ हरित कंचुकी वसुधा व्रजबालिका उर्मिल जलधि स्त्रस्त काची-रणित सुरभित समीर
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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