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________________ कौन पहुंचा देगा उस पार ? तुम बस निवेदन कर दिया और तुम चुप रहो तुम्हारा निवेदन, और निवेदन के बाद गहरी चुप्पी और मौन | कौन पहुंचा देगा उस पार ? एक प्रश्न मात्र है। तुमने कुछ मांगा नहीं है। तुमने कुछ चाहा नहीं है। ऐसे निवेदन के लिए अष्टावक्र के मार्ग पर कोई इंकार नहीं है। लेकिन तुम्हारी जो प्रार्थनायें हैं उनके लिए तो इंकार है । तुम्हारी प्रार्थनायें तो अभीप्सा के ही हिस्से हैं। आकांक्षा का नया-नया रूप। तुम कुछ पाने चले हो - संसार, स्वर्ग, मोक्ष। तुम अपने को ही भरने में लगे हो। वास्तविक प्रार्थना वहीं उठती है जहां तुम खाली हो, शून्य हो । कौन पहुंचा देगा उस पार ? तीसरा प्रश्न : सदगुरु की छाया में होने का अर्थ कृपा करके हमें समझाइये। अर्थ नहीं समझाया जा सकता, अनुभव करना पड़े। कैसे समझाओगे? यात्री थका–मादा है मार्ग पर धूप, धूल-धंवास, लंबी यात्रा की थकान ! कोई छाया नहीं मिली कभी । और पूछता है, किसी वृक्ष की छाया के तले विश्राम का क्या अर्थ है? कैसे समझाओगे उसे? क्या करोगे उपाय? कौन-सी विधि काम आयेगी समझाने में? नहीं, अर्थ समझाया नहीं जा सकता। उसे कहना पड़ेगा कि वृक्ष हैं, छाया भी है, तू विश्राम कर। जानकर ही जानेगा तू । अनुभव कर ही जानेगा तू । और कोई उपाय नहीं है। सदगुरु के पास होने का इतना ही अर्थ है कि तुमने अपने अहंकार पर भरोसा खो दिया। अब तुम कहते हो, इस अहंकार की मानकर बहुत चल लिये कहीं पहुंचे नहीं| सिर्फ दुख पाया, पीड़ा पाई। इसने भटकाया, उलझाया, भरमाया, अब इसकी और न सुनेंगे। बजाय अपने अहंकार की सुनने के अब तुमने किसी प्रज्ञा - पुरुष की वाणी पर भरोसा किया। यह जो वाणी है किसी प्रज्ञा-पुरुष की, किसी दूसरे की वाणी नहीं, तुम्हारे ही अंतरतम की वाणी है। सदगुरु वही है जो तुम्हारे भीतर छिपे अंतरतम की वाणी बोलता है। जो तुम अपने भीतर नहीं खोज पाते वह बाहर से तुम्हें सुनाता है। जिस दिन तुम भीतर भी खोजने में समर्थ हो जाओगे, उस दिन पाओगे यह वृक्ष बाहर नहीं था, यह तुम्हारे भीतर ही फैल रहा था। यह छाया तुम्हारे भीतर से ही आ रही थी। गुरु ने तो सिर्फ इशारा किया, इंगित किया।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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