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________________ आ जाता है कि कम-से-कम यह तो चोर नहीं हो सकता। चोर होता तो यह चिल्लाता! चोर होता तो यह चोरी के इतने खिलाफ कैसे होता! इसलिए जो होशियार चोर है, वह चोरी के खिलाफ चिल्लाता है, शोरगल मचाता है, और इसी तरह बच जाता है। कोई सीधा-सा आदमी डर के मारे अगर चपचाप सिकुड़ा खड़ा रह जाए कि कहीं ऐसा न हो कि कोई हम पर शक कर ले, वह पकड़ लिया जाएगा। जो शोरगुल कर रहा है, उसे तो कौन पकड़ेगा! बर्टेड रसॅल ने लिखा है कि जो आदमी जिस बात की जितनी निंदा करे, समझना कि भीतर गहरे में उसका कोई न्यस्त स्वार्थ है। या तो वह पाता है कि मैं ऐसा हूं,या तो वह डरा हुआ है कि कहीं जाहिर न हो जाए. तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासी कामवासना की इतनी निंदा करते हैं उसका कुल कारण इतना है, कामवासना उनके भीतर बड़ी लहरें व तरंगें ले रही है। वे स्त्री से पीड़ित व परेशान हैं। इसलिए तुम्हारे शास्त्र स्त्रियों को गाली दिये जाते हैं। वे जो शास्त्र लिखनेवाले हैं, जरूर कहीं न कहीं स्त्री से बहुत पीड़ित रहे होंगे। उनके सपने में स्त्री उनको सता रही होगी। स्त्री उनका पीछा कर रही है। वे स्त्री से भाग गये हैं। जिससे कोई भाग जाता है, उससे कभी भाग नहीं पाता। जिससे भागे, उससे उलझे रह जाओगे। वे जो तुम्हारे शास्त्रकार तुमसे कहते हैं, धन से बचो, धन में पाप है, समझ लेना उनका लोभ अभी भी धन में लगा है। अन्यथा, इतनी निंदा का कोई कारण न था। असल में तो निंदा का कोई कारण ही नहीं है। परमज्ञानी को न तो कोई स्तुति है, न कोई निंदा है। न तो वह महात्मा के चरणों में फल चढाने जाता और न निंदक के सिर पर अंगारे रखने जाता, जूते मारने जाता। बरे को जूते नहीं मारता, भले का सम्मान नहीं करता। अगर कोई भला है, तो भला, अगर कोई बुरा है, तो बुरा। जैसा है, वैसा है। इस बात को थोड़ा समझना। यह परम दशा की व्याख्या है। जैसा है, वैसा है। राम राम हैं, रावण-रावण है। जैसा है, वैसा है। नीम कडवी है और आम मीठा है। क्या तो नीम की निंदा और क्या आम की प्रशंसा! क्या सार है? काटा काटा है, फूल फूल है। जो जैसा, वैसा। इसमें रत्ती भर आकांक्षा नहीं है, आकांक्षा का कोई संबंध नहीं है। न शांतं स्तौति निष्कामो। जो स्वयं निष्काम हो गया है, वह शांत व्यक्ति की भी स्तुति नहीं करता। जब निष्काम ही हो गया, तो अब तो शांति की भी कामना नहीं है। तो स्तुति का क्या प्रयोजन! न दुष्टमपि निदति। और न दुष्ट की निंदा करता। निंदा में भी दुष्टता है। तुम जब किसी की निंदा करते हो तब भी उसमें दुष्टता ही छिपी हुई है। निंदा में भी तुम चोट पहुंचाने की चेष्टा कर रहे हो निंदा करके तुम स्वयं ही निंदित हो गये। न तो स्तुति का कुछ अर्थ है, न निंदा का कुछ अर्थ है। निष्काम व्यक्ति न पक्ष में है, न विपक्ष में। निष्काम व्यक्ति का कोई आग्रह नहीं है। निष्काम व्यक्ति अनाग्रही है। ___'वह दुख और सुख में समान है। सब स्थितियों में तृप्त। और उसको करने को कुछ भी नहीं बचा है।'
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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