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________________ जाऊं, यह भोग लूं? यह न चूक जाये, ये सब तो चार फूल हैं, जो सुबह खिले और सांझ होते-होते मुरझा जायेंगे। कुछ ऐसे भी फूल हैं जो मुरझाते नहीं। उन फूलों को ही पा लेना जीवन का लक्ष्य है। वे फूल केवल अमर्त्य में ही उपलब्ध हो सकते हैं। मूर्छित आदमी को तो क्षण भर जो सुख मिल जाता है यह भी चमत्कार है। यह भी मिलना नहीं चाहिए। यह भी मिल जाता है, चमत्कार है! क्षण भर को भ्रांति हो जाती है सुख की, यह भी रहस्यपूर्ण है। इतना भी होना नहीं चाहिए। जाग्रत पुरुष को क्षण भर को भी दुख नहीं होता। मूर्छित व्यक्ति को क्षण भर को सुख होता मालूम होता है; होता कहां है! हुआ नहीं, हुआ नहीं कि गया नहीं। इधर आ भी नहीं पाया कि उधर गया। हाथ बंध कहां पाते हैं? मुट्ठी में आ कहां पाता है? कभी किसी सुख के क्षण पर मुट्ठी बांध पाये हो? कभी थोड़ी देर को भी हाथ में रखकर देख पाये हो? आया नहीं कि गया नहीं। इधर पता चलते-चलते कि आया, कि जा चुका हो जाता है। पानी पर खींची लकीर जैसे ये सुख के क्षण! इन पर बहुत भरोसा मत कर लेना। क्योंकि इन पर बहुत भरोसा कर लिया तो जीवन की जो ऊर्जा अमूर्छा बन सकती थी जागृति, ध्यान बन सकती थी, समाधि बन सकती थी, वही ऊर्जा इन्हीं क्षणों में व्यतीत हो जायेगी। और जब मौत करीब आयेगी तो तुम खेल-खिलौने अपने आसपास पाओगे, और कुछ भी नहीं। सब टूटे-फूटे खेल-खिलौने, जिन्हें छोड़कर जाना पड़ेगा। आंखों में तुम्हारे आंसू भरे होंगे। अंजुलि भर बीते पल नैनों में गंगाजल लपटों की बाहों में पिघल गये स्वप्न महल और चिता पर सिर्फ लपटों में ही बांहें होंगी और सब स्वप्न-महल पिघल जायेंगे। माटी में घुले-मिले मेघ सुवन कंचन के जिनको सोचा था स्वर्ण जैसा वे सब मिट्टी में घुल-मिल गये। क्षणभंगुर जीवन के चार सुमन जीवन के जागो! ताकि जो हो सकता है, हो जाये। जगाओ अपने को। और ऊर्जा को ऐसा व्यर्थ मत खोते फिरो। जो क्षण गया, गया; फिर लौट न सकेगा। जो ऊर्जा हाथ से खो गई, खो गई: फिर तुम उसे वापिस न पा सकोगे। थोड़े बुद्धिमान बनो। बहुत जी लिये मंदबुद्धि की तरह, अब थोड़ी प्रतिभा से जीयो, मेधा से जीयो। थोड़ा- थोड़ा होश सम्हालो। सम्हालते -सम्हालते एक दिन सम्हल जाता है। चौथा प्रश्न : राबिया ने कहा है कि ईश्वर यदि तुम्हारी ओर उन्मुख हो तो ही तुम धर्म में परिवर्तित यानी धार्मिक हो सकते हो। तो क्या आदमी के हाथ में पहल करना भी नहीं है? क्या पहल भी परमात्मा ही करता है?
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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