SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर तुम्हारा सुख-दुख निर्भर है। जिसकी तुम प्रतीक्षा कर रहे हो, मिलेगा तो प्रसन्न हो जाओगे, नहीं मिलेगा तो विषाद से भर जाओगे। पर-निर्भरता जारी रहेगी। मोक्ष का अर्थ है, अब मैं पर-निर्भर नहीं। अब मैं अपने में पूरा हूं, समग्र हूं। अब किसी भी बात की जरूरत नहीं है। जो होना था, जो चाहिए था, है; सदा से है। ऐसी महाशय की दशा। 'महाशय पुरुष विक्षेपरहित....।' फिर विक्षेप का कोई कारण ही नहीं है। विक्षेप तो पड़ता ही इसलिए है कि हमारी कोई आकांक्षा है। तुम्हें धन चाहिए तो विक्षेप पड़ेगा, क्योंकि और लोगों को भी धन चाहिए। संघर्ष होगा, प्रतिस्पर्धा होगी, दुश्मनी होगी, प्रतियोगिता होगी। पक्का नहीं है कि तुम पा पाओगे। क्योंकि और भी प्रतियोगी हैं, बलशाली प्रतियोगी हैं। यह कोई सहज होनेवाला नहीं है। तुम्हें पद चाहिए तो भी उपद्रव होगा, विक्षेप खड़े होंगे। हजार बाधायें आ जायेंगी। तुम्हें अगर मोक्ष चाहिए तो भी तुम पाओगे कि हजार बाधायें हैं। शरीर बाधायें खड़ी करता है, मन बाधायें खड़ी करता है। वासनायें उत्तुंग हो जाती हैं, कामनायें दौड़ती हैं। हजार-हजार-विक्षेप खड़े हो जाते हैं। बांधो, सम्हालो, गांठ बंधती नहीं, खुल-खुल जाती है। इधर से सम्हालो, उधर से बिखर जाता। एक तरफ से बसा पाते हो कि दूसरी तरफ से उजड़ जाता है। ऐसे उधेड़बुन में जीवन बीतता। जब तक तम्हारे मन में आकांक्षा है तब तक विक्षेप भी रहेगा। विक्षेप तो ऐसा ही है जैसे कि आकांक्षा की आंधी चलती हो तो शांत झील पर लहरें उठती हैं। वे लहरें विक्षेप हैं। जब तुम्हारे चित्त पर आकांक्षा की आंधी चलती है तो लहरें उठती हैं। लहरों से मत लड़ो। लहरों से लड़कर कुछ सार न होगा। यहीं फर्क है अष्टावक्र और पतंजलि का। पंतजलि कहते हैं, 'चित्तवृत्तिनिरोध।' चित्त की वृत्तियों का निरोध करने से योग हो जाता है। यही उनकी समाधि की परिभाषा है-वृत्तियों का निरोध। वृत्ति का मतलब हुआ ः तरंग, लहर।, ___ अष्टावक्र कहते हैं, वृत्तियों का कैसे निरोध करोगे? आंधी चल रही है, अंधड़ उठा है, तूफान, बवंडर है। तुम छोटी-छोटी ऊर्मियों को शांत कैसे करोगे? एक-एक लहर को शांत करते रहोगे, अनंत काल तक भी न हो पायेगा। आंधी चल ही रही है, वह नई लहरें पैदा कर रही है। अष्टावक्र कहते हैं, लहरों को शांत करने की फिक्र छोड़ो, आंधी से ही छुटकारा पा लो। और आंधी तुम ही पैदा कर रहे हो, यह मजा है। आकांक्षा की आंधी, वासना की आंधी, कामना की आंधी। कामना की आंधी चल रही है तो लहरें उठती हैं। अब तुम लहरों को शांत करने में लगे हो। मूल को शांत कर दो, तरंगें अपने से शांत हो जायेंगी। तुम वासना छोड़ दो। ___ यह तो तुमसे औरों ने भी कहा है, वासना छोड़ दो। लेकिन अष्टावक्र का वक्तव्य परिपूर्ण है। और कहते हैं वासना छोड़ दो, वे कहते हैं संसार की वासना छोड़ दो, प्रभु की वासना करो। तो आंधी का नाम बदल देते हैं। सांसारिक आंधी न रही, असांसारिक आंधी हो गई। धन की आंधी न रही, ध्यान की आंधी हो गई; पर आंधी चलेगी। लेबल बदला, नाम बदला, रंग बदला, लेकिन मूल वही का वही रहा। पहले तुम मांगते थे इस संसार में पद मिल जाये, अब परमपद मांगते हो। मगर मांग जारी है। और तुम भिखमंगे के भिखमंगे हो। अष्टावक्र कहते हैं छोड़ ही दो। संसार और मोक्ष, ऐसा भेद मत करो। आकांक्षा आकांक्षा है; 56 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy