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________________ जीने के लिए ही उत्तर चाहिए था। अगर जीवन ही गंवाकर उत्तर मिले, उस उत्तर का क्या करेंगे? ____ मुमुक्षा का अर्थ होता है : मोक्ष की आकांक्षा, परम स्वातंत्र्य की प्रबल अभीप्सा। अब अगर जीवन भी दांव पर लग जाये तो कुछ हर्ज नहीं। इतना महत्वपूर्ण है प्रश्न का उत्तर कि जीवन भी गंवाया जा सकता है: जीवन को भी दांव पर लगाया जा मुमुक्षा और गहरे जाती है। लेकिन यह सूत्र कहता है...ऐसा सूत्र दूसरे किसी शास्त्र में उपलब्ध नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं, सूत्र बड़ा क्रांतिकारी है। अष्टावक्र के सूत्र कुछ ऐसे हैं कि किसी शास्त्रकार ने कभी इतने गहरे जाने का साहस नहीं किया। ____ अष्टावक्र कहते हैं, 'महाशय पुरुष विक्षेपरहित और समाधिरहित होने के कारण न मुमुक्षु है और न गैर-मुमुक्षु है।' लेकिन एक ऐसी भी दशा है, जहां मुमुक्षा भी नहीं ले जाती। वहां जाने के लिए मुमुक्षा भी छोड़ देनी पड़ती है। तो समझें। - मुमुक्षा का अर्थ होता है : स्वतंत्र होने की आकांक्षा, मोक्ष की आकांक्षा। लेकिन मोक्ष का स्वभाव ऐसा है कि कोई भी आकांक्षा हो तो मोक्ष संभव न हो पायेगा। मोक्ष की आकांक्षा भी बाधा बन जायेगी। आकांक्षा मात्र बंधन बन जाती। धन की आकांक्षा तो बंधन बनती ही है, प्रेम की आकांक्षा तो बंधन बनती ही है, लेकिन मोक्ष की आकांक्षा, परमात्मा को पाने की आकांक्षा भी अंतिम बंधन है; आखिरी बंधन है। बड़ा स्वर्णनिर्मित है बंधन; हीरे-जवाहरातों जड़ा है। धन्यभागी हैं वे जिनके हाथों में मोक्ष का बंधन पड़ा हो, लेकिन है तो बंधन ही। यह खयाल कि मैं मुक्त हो जाऊं, बेचैनी पैदा करेगा। और यह खयाल कि मैं मुक्त हो जाऊं, वर्तमान से अन्यथा ले जायेगा, भविष्य में ले जायेगा। यह तो वासना का फैलाव हो गया। नई वासना है, पर है वासना। सुंदर वासना है, पर है वासना। और बीमारी कितनी ही बहुमूल्य हो, हीरे-जवाहरातों जड़ी हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? चाहे चिकित्सा-शास्त्री कहते हों कि बीमारी साधारण बीमारी नहीं है राजरोग है, सिर्फ राजाओं-महाराजाओं को होता है तो भी क्या फर्क पड़ता है? राजरोग भी रोग ही है। मोक्ष की वासना भी वासना है। इसे समझने की थोड़ी चेष्टा करें। आदमी बंधा क्यों है ? बंधन कहां है? बंधन इस बात में है कि हम जो हैं, उससे हम राजी नहीं, कुछ और होना है। तो जो हैं उसमें हमारी तृप्ति नहीं। जहां हम हैं, जैसे हम हैं, वहां हमारा उत्सव नहीं। कहीं और होंगे तो नाचेंगे। यहां आंगन टेढ़ा है। आज तो नहीं नाच सकते। आज तो सुविधा नहीं है, कल नाचेंगे, परसों नाचेंगे। कल आता नहीं। कल ही नहीं आता तो परसों तो आयेगा कैसे? रोज जब भी समय मिलता है वह आज होता है। और जो भी पास आ जाता है वही आंगन टेढ़ा हो जाता है। हमारे जीवन की धारा भविष्योन्मुख है। कल स्वर्ग में, मोक्ष में, कहीं और सुख है; यहां तो दुख है। वासना का अर्थ है : यहां दुख, सुख कहीं और। सुख सपने में, यथार्थ में दुख। तो हम सपने को उतार लाने की चेष्टा करते हैं। स्वर्ग को उतारना है पृथ्वी पर या अपने को ले जाना है स्वर्ग में। लेकिन आज और अभी और यहीं तो महोत्सव नहीं रच सकता। आज तो बांसुरी नहीं बजेगी। और जिसकी बांसुरी आज नहीं बज रही वही बंधन में है। उसकी बांसुरी कभी नहीं बजेगी। या तो आज, या कभी नहीं। या तो अभी, या कभी नहीं। - अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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