SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ समाधेरविक्षेपान्न मुमुक्षुर्न चेतरः। । निश्चित्य कल्पितं पश्यन् ब्रह्मैवास्ते महाशयः।। पहला सूत्रः 'महाशय पुरुष विक्षेपरहित और समाधिरहित होने के कारण न मुमुक्षु है, न गैर-मुमुक्षु है; वह संसार को कल्पित देख ब्रह्मवत रहता है।' अत्यंत क्रांतिकारी सूत्र है। . साधारण जन परमात्मा के संबंध में कुछ पूछते हैं तो मात्र कुतूहल होता है। कुतूहल से कोई कभी सत्य तक पहुंचता नहीं। कुतूहल तो बड़ी ऊपर-ऊपर की बात है; बचकाना है। जैसे छोटे बच्चे पूछते हैं। जो सामने आ गया उसी के संबंध में प्रश्न पूछ लेते हैं। उत्तर मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक। क्षण भर बाद प्रश्न भी भूल जाता है, उत्तर भी भूल जाता है। हवा की तरंग थी, आयी और गई। उत्तर दिया तो ठीक, न दिया तो भी कोई चिंता नहीं। उत्तर की कोई गहरी चाह न थी। ऐसे ही प्रश्न उठ गया था। प्रश्न उठाना मन का स्वभाव है। कुतूहल से कोई कभी सत्य तक नहीं पहुंचता। कुतूहल से गहरी जाती है जिज्ञासा। जिज्ञासा खोजी बनाती है। जिज्ञासा का अर्थ है, खोजकर रहूंगा। प्रश्न मूल्यवान है। और जब तक इस प्रश्न का उत्तर न मिले तब तक जीवन में अर्थ न होगा। सुकरात ने कहा है, अपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है। जिस जीवन का ठीक से परीक्षण न किया हो और जिस जीवन का अर्थबोध न हो, उसे भी क्या जीना! फिर आदमी और पशु के जीवन में भेद क्या? ठीक विश्लेषण, ठीक अर्थबोध, ठीक प्रयोजन का पता चल जाये कि क्यों हूं, तभी जीने का कुछ.सार है। कुतूहल ऊपर-ऊपर है। जिज्ञासा गहरे जाती है, लेकिन फिर भी पूरे प्राणों तक नहीं जाती। अगर जीवन दांव पर लगाना हो तो जिज्ञासु दांव पर नहीं लगाता। उससे भी गहरी जाती है मुमुक्षा। मुमुक्षा का अर्थ होता है : प्रश्न का उत्तर जीवन से भी ज्यादा मूल्यवान है। जिज्ञासा का अर्थ होता है : जीवन को जीने के लिए प्रश्न का उत्तर जरूरी है, लेकिन जीवन से ज्यादा मूल्यवान नहीं। अगर कोई कहे कि जीवन को देकर उत्तर मिल सकता है तो क्या सार रहा?
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy