SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फुनगी पर फूल खिला झरा तो गहरा अपना ही मूल मिला वह जो फुनगी पर फूल खिला है, अगर गिर जाये, झर जाये तो अपनी ही जड़ें पा लेगा। तुम अगर झुक जाओ तो अपना ही मूल पा लोगे। टूटा सिलसिला फुनगी पर फूल खिला झरा तो गहरा अपना ही मूल मिला झुको, समर्पण करो तो तुम स्वयं को ही पा लोगे। माध्यम होगा कोई, पाओगे तुम अपने को ही-किसी के द्वार से। गुरु द्वार है। गुरुद्वारा। उसके द्वार से तुम अपने पर ही लौट आओगे। पांचवां प्रश्नः मैं किसी को पुकारता हूं, जिसे जानता नहीं मैं हं किसी के प्यार में, जिसे पहचानता नहीं यह क्या, इंतजार के बाद भी आता है इंतजार या समझू कि मैं ही तुझे पुकारता नहीं? त्य की खोज या सत्य का प्रेम या सत्य | की जिज्ञासा उसकी ही खोज है, जिसे हम जानते नहीं। उसकी ही पुकार है, जिसे हम पहचानते नहीं। जिसे तुम पहचानते हो वह तो झूठा हो गया। जिसे तुम जानते हो उससे तो कुछ भी न पाया। उसे तो जान भी लिया और क्या पाया? अनजान की तलाश है। अपरिचित की खोज है। अज्ञात की यात्रा ऐसा ही है। स्मरण रखना, रोज-रोज जो जान लो उसे छोड़ देना है, ताकि यात्रा दूषित न हो पाये और यात्रा शुद्ध रूप से अनजान, अपरिचित, अज्ञात की बनी रहे। जो जान लो उसे झाड़ देना। वह कचरा हो गया। ज्ञात को इकट्ठा मत करना। ज्ञात से ही तो बुद्धि बनती है। ज्ञात को इकट्ठा ही मत करना। ज्ञात की धूल इकट्ठी मत होने देना, ताकि तुम्हारा चित्त का दर्पण अज्ञात को झलकाता रहे; अज्ञात को पुकारता रहे। अज्ञात का आवाहन और चुनौती आती रहे। 44 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy