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________________ तुम आदमियों को तो घृणा करोगे और मनुष्यता की पूजा करोगे। ऐसा भी हो सकता है कि मनुष्यता के प्रेम के पीछे मनुष्यों की हत्या करनी पड़े तो कर दो। ऐसा ही तो कर रहे हैं लोग। ईश्वर के भक्त हिंदू मुसलमान को मार डालते हैं, मुसलमान हिंदुओं को मार डालते हैं। वे कहते हैं ईश्वर की सेवा कर रहे हैं। ईश्वर कोरा शब्द है। और जो ठोस है उसे तुम विनाश कर रहे हो। और शाब्दिक प्रत्यय मात्र के लिए, धारणा मात्र के लिए। आदमी बहुत बेईमान है। अब तुम कहते हो, व्यक्ति की पूजा न करके व्यक्तित्व की पूजा करें। व्यक्तित्व का मतलब क्या होता है ? कहां पाओगे व्यक्तित्व को? व्यक्ति से अलग कहीं व्यक्तित्व होता? तुम कहते हो, नर्तक की हम फिक्र नहीं करते; हम तो नृत्य की पूजा करेंगे। लेकिन नर्तक के बिना नृत्य कहीं होता? और जब भी तुम नृत्य की पूजा करने जाओगे तो तुम नर्तक को पाओगे। भाव-भंगिमायें नर्तन की, नर्तक की भाव-भंगिमायें हैं। ___ व्यक्तित्व की पूजा का क्या अर्थ होता है? लेकिन मैं तुमसे कह नहीं रहा कि तुम व्यक्ति की पूजा करो। मैं तुमसे इतना ही कह रहा हूं, शब्दों से बचो, ठोस को ग्रहण करो। ठोस है वास्तविक, यथार्थ। शाब्दिक जाल में मत पड़ो। अगर बुद्ध तुम्हें मिल जायें तो तुम यह मत कहना कि हम तो बुद्धत्व की पूजा करेंगे। बुद्धत्व को कहां पाओगे? जब भी पाओगे बुद्ध को पाओगे। और बुद्धत्व अगर कहीं मिलेगा तो बुद्ध की छाया की तरह मिलेगा। तुम कहते हो हम छाया की पूजा करेंगे; मूल की पूजा न करेंगे। तुम कहते हो हम तो जिनत्व की पूजा करेंगे, महावीर से हमें क्या लेना-देना! . लेकिन जरा गौर करना, कहीं अहंकार तुम्हें धोखा तो नहीं दे रहा है? अहंकार तर्क तो नहीं खोज रहा है ? अहंकार यह तो नहीं कर रहा है इंतजाम, कि देखो पूजा से बचा दिया, समर्पण से बचा दिया, विनम्र होने से बचा दिया। अब तुम खोजते रहो बुद्धत्व को, जिनत्व को। कहीं मिलेगा नहीं, तो झुकने का कोई सवाल ही न आयेगा। अब यह बड़े मजे की बात है, जीवन के सामान्य तल पर तुम ऐसा नहीं करते। जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो तो तुम स्त्रीत्व को प्रेम नहीं करते, तुम स्त्री के प्रेम में पड़ते हो। तब तुम यह धोखा नहीं करते। तुम यह नहीं कहते कि हम तो स्त्रीत्व को प्रेम करेंगे; स्त्री को क्या करना! कहते हो? तब तुम यह नहीं कहते। तब तो तुम स्त्री के प्रेम में पड़ते हो। तब तुम नहीं शब्द की बात करते, तब तुम सत्य को पकड़ते हो। जहां तुम पकड़ना चाहते हो वहां तुम सत्य को पकड़ते हो; जहां तुम नहीं पकड़ना चाहते, जहां तुम बचना चाहते हो, वहां तुम शब्दों के जाल फैलाते हो। __ जब प्रेम करोगे तो स्त्री को प्रेम करना होगा, स्त्रीत्व को प्रेम नहीं किया जाता। जब प्रेम करना होगा तो गुरु को प्रेम करना होगा, गुरुत्व को प्रेम नहीं किया जाता। और जब करना होगा समर्पण तो बुद्ध को करना होगा, बुद्धत्व को समर्पण नहीं किया जाता। ये शब्द-जाल हैं। और अहंकार बड़ा कुशल है इन जालों में अपने को छिपा लेने के लिए। तुम इस अहंकार से सावधान रहना। टूटा सिलसिला घन बरसे 43
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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