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________________ लेकर आये ताकि मैं कुछ कह न सकूँ। आनंद की मौजूदगी में मैं चुपचाप रह जाती। मैंने अपने हृदय के छाले तुम्हें न दिखाये होते। बात खतम हो गई थी। तुमने फिर मेरा भरोसा नहीं किया। तुम फिर किसी को लेकर आ गये आड़ की तरह, बीच में पर्दे की तरह। बुद्धपुरुष की कोई परिभाषा नहीं। फिर कोई एक बुद्धपुरुष थोड़े ही हुआ है कि परिभाषा हो जाये! सब बुद्धपुरुष अनूठे होते हैं। . कृष्ण अपनी तरह, राम अपनी तरह, बुद्ध अपनी तरह, महावीर अपनी तरह, जीसस अपनी तरह, मोहम्मद अपनी तरह, इतने फूल खिलते हैं इस पृथ्वी पर, इतने भिन्न-भिन्न। जूही है और बेला है और चंपा है और चमेली है; गुलाब और कमल...और सब अलग-अलग। हर बुद्धपुरुष अनूठा है। इसलिए परिभाषा तो कैसे हो? नहीं, कोई परिभाषा नहीं हो सकती। । तुम पूछते हो, 'क्या बुद्धपुरुष भी आंसू बहाते हैं?' बहा भी सकते हैं न भी बहायें। निर्भर करता है इस पर—किस बुद्धपुरुष के संबंध में बात हो रही है, उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। ___ तुमने देखा! कृष्ण का एक नाम है, रणछोड़दास। बड़ा मजेदार नाम है। भाग खड़े हुए रण । छोड़कर। रणछोड़दासजी। __अब तुम कहोगे, बुद्धपुरुष भाग सकता? कृष्ण भागे। बुद्धपुरुष झूठ बोल सकता? कृष्ण के जीवन में बहुत झूठ है। बुद्धपुरुष दिये हुए वचन तोड़ सकता? कृष्ण ने तोड़े। क्या करोगे? बुद्धपुरुष हाथ में तलवार ले सकता है? मोहम्मद ने ली। हालांकि तलवार पर लिखा था, शांति मेरा संदेश है। इस्लाम का अर्थ होता है : शांति। अब तलवार पर ही लिखे हैं. 'शांति मेरा संदेश है'. और कोई जगह न मिली लिखने को? ' कहना मुश्किल है। इधर एक बुद्ध हैं जो कहते हैं, चींटी को भी मारना पाप है। उधर एक मोहम्मद हैं, वे तलवार लेकर आदमियों को काटते रहे। और जरा फिक्र न की। इधर महावीर हैं, वे पानी भी छानकर पीते। उधर कृष्ण हैं, वे अर्जुन से कहते हैं, तू मार। बेफिक्र मार। क्योंकि ये मारे ही जा चुके हैं। तू तो निमित्तमात्र है। जितने बुद्धपुरुष उतने प्रकार हैं। परिभाषा असंभव है। महावीर अकेले खड़े हैं। कृष्ण हजार स्त्रियों के बीच नाच रहे हैं। बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठे हैं। मीरा गांव-गांव नाच रही है। बुद्ध को तुम नाचता हुआ सोच नहीं सकते। महावीर के ओंठ पर बांसुरी रखोगे बड़ी बेहूदी मालूम होगी। कृष्ण को नंगा खड़ा कर दो दिगंबर, जंचेंगे नहीं। सब अनूठे हैं। सब अपने-अपने जैसे हैं। एक-एक बुद्धपुरुष एक-एक अनूठी घटना है इसलिए कोई परिभाषा नहीं हो सकती। कुछ कहा नहीं जा सकता। __ और अभी सब बुद्धपुरुष हो नहीं गये हैं। जितने हुए हैं उससे बहुत ज्यादा होंगे। इसलिए अभी परिभाषा बंद भी नहीं हो सकती। कल कोई बुद्धपुरुष कैसा होगा, कहना मुश्किल है। एक बात तय है, बस उसी को तुम समझना मूल आधार : कि बुद्धपुरुष जो भी करता है, जागा हुआ करता है। रोये तो जागा हुआ रोता, नाचे तो जागा हुआ नाचता। अकेला खड़ा रहे तो जागा हुआ खड़ा रहता है। अवनी पर आकाश गा रहा 377
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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