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________________ के बाद तो मैं शिष्य हो जाऊंगा, फिर तुम मेरी सुनोगे नहीं। मुझे तुम्हारी सुननी पड़ेगी। दीक्षा के पहले बड़े भाई के हैसियत से ये शर्तें तुमसे मांग लेता हूं। उसमें एक शर्त यह भी थी कि सदा तुम्हारे साथ रहूंगा। तुम कभी भी मुझसे यह न कह सकोगे कि आनंद, मुझे छोड़। रात तुम्हारे कमरे में सोऊंगा। तुम्हारी छाया की तरह चलूंगा। तुम मुझे समझा न सकोगे कि आनंद जा, तू दूसरे गांव में शिक्षा दे लोगों को। मैं कहीं जानेवाला नहीं। मैं तुम्हारे पीछे रहूंगा। ऐसी उसने पहले ही शर्त रखी थी और बुद्ध ने शर्त मान ली थी। वे महल में प्रवेश करने लगे तो बुद्ध ने कहा, आनंद, यशोधरा खुल न पायेगी अगर तू मौजूद रहा। कुलीन स्त्री है। वह अपना भाव भी प्रगट न करेगी तेरे सामने । फिर तू मेरा बड़ा भाई है, वह घूंघट कर लेगी। वह रो भी न पायेगी, नाराज भी न हो पायेगी । और तेरे सामने तेरी प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर वह कुछ कहेगी भी नहीं । तू कृपा कर । आज तू जरा पीछे रह जा। आनंद ने कहा, यह कैसी बात ! बुद्धपुरुष को पत्नी क्या, पति क्या ! पर बुद्ध ने कहा, तू छोड़ फिक्र बुद्धपुरुषों की। मैं किसी परिभाषा से बंधा नहीं। यही उचित मालूम होता है। और बात ठीक थी। यशोधरा क्षमा न कर पाती बुद्ध को अगर आनंद मौजूद रहता । जब बुद्ध गये, यशोधरा टूट पड़ी। रोयी चीखी, चिल्लाई, नाराज हुई। उसने कहा कि तुम मुझे छोड़कर भाग गये। तुमने इतना भी भरोसा न किया कि मुझे जगाकर पूछ लेते ? क्या तुम सोचते हो, मैं मना करती ? तुमने इतना भी मेरे प्रेम का भरोसा न किया, इतना मेरे प्रेम का समादर न किया। तुम पूछ लेते कि मैं जाता हूं। मैं तुम्हें जाने देती लेकिन तुम पूछ तो लेते। तुम जगाकर कह तो देते। मैं अंतिम क्षण तुम्हारे पैर तो छू लेती। तुमने इतना भी मुझे मौका न दिया ? तुमने इतना भी भरोसा न किया? मैं क्षत्राणी हूं, अगर कहते कि तुम्हें अपनी गर्दन भी काटनी है तो मैं तुम्हारे पैर छूकर तुमसे कहती कि ठीक है, तुम मालिक हो। तुम मेरे स्वामी हो। मैं तुम्हारी मालिक नहीं हूं। तुम्हें जो ठीक लगे, करो। लेकिन तुम भाग गये चोर की तरह, वह मन में कसती है बात । कांटे की तरह सलती है बात । वह खूब नाराज हुई। वह खूब चिल्लाई । वह खूब रोई । इस सब उधेड़बुन में उसे खयाल ही न रहा कि बुद्ध चुपचाप खड़े हैं, एक शब्द भी नहीं बोले हैं। तब उसने अपनी आंखों से आंसू पोंछे और बुद्ध से कहा, आप चुप हैं, बोलते नहीं? बुद्ध ने कहा, मैं क्या बोलूं ? क्योंकि जो गया था वह आया नहीं। जिससे तू लड़ रही है वह अब है नहीं । और जो मैं आया हूं उससे तू बिलकुल अपरिचित है। तू मेरी तरफ देख पागल ! जो गया था वह मैं नहीं हूं। देह वैसी लगती होगी तुझे, लेकिन सब बदल गया । आमूल बदल गया हूं। जड़ मूल से बदल गया हूं। यह कोई और ही आया है। यह एक दूसरी ही ज्योति है। मैं तो मिट गया, नया होकर आया हूं। तू मेरी तरफ देख । अब कब तक गुजरे को लेकर बैठी रहेगी? जो हुआ, हुआ । उठ । जो मुझे हुआ है वह तुझे देने आया हूं। मैंने परम आनंद पाया है। तू भी उसकी भागीदार बन । और यशोधरा संन्यस्त हुई। जब यशोधरा संन्यस्त हो गई तो यशोधरा से बुद्ध ने कहा, एक बात तू आनंद को समझा दे। वह चिंतित है। अगर मैं आनंद को लेकर आया होता तो तू खुल पाती ? वह कहती, कभी नहीं खुल पाती। मैं तुम्हें फिर कभी क्षमा न कर पाती। एक तो चोर की तरह भागकर गये और फिर आये तो भीड़-भाड़ 376 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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