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________________ व्यवहार नहीं करता, अपने स्वभाव से व्यवहार करता है। शायद बहुतों को न भी रुचे । क्योंकि जो झूठ में बहुत पारंगत हो गये हैं उनको यह सचाई न रुचेगी। जो झूठ में बहुत कुशल हो गये हैं उनको इस सच में खतरा मालूम पड़ेगा। उनको उनके झूठ के टूट जाने का भय मालूम पड़ेगा। इसलिए ज्ञानियों पर भीड़ सदा नाराज रहती है। हां, जब ज्ञानी मर जाते हैं, तब उनकी पूजा करती है । क्योंकि मरे ज्ञानियों में कोई खतरा नहीं है। जीवित ज्ञानी के सदा भीड़ विरोध में रहती है- रहेगी ही। क्योंकि जीवित ज्ञानी की मौजूदगी ही बताती है कि भीड़ झूठ है । और जीवित ज्ञानी के पास आकर तुम्हें अपनी असली तस्वीर दिखाई पड़ने लगती है । जीवित ज्ञानी कसौटी है; उसके पास आते ही पता चल जाता है कि तुम सोना हो कि पीतल । और कोई मानने को तैयार नहीं होता कि पीतल है। जानते हो, फिर भी मानने को तैयार नहीं होते कि पीतल हो । जानते हो कि पीतल हो लेकिन फिर भी घोषणा करते रहते हो स्वर्ण होने की । जितना पता चलता है पीतल हो, उतने ही जोर से चिल्लाते हो कि स्वर्ण हूं। अपने को बचाना तो होता । अहंकार अपनी सुरक्षा तो करता। इसलिए ज्ञानी से लोग नाराज होते हैं। महावीर नग्न खड़े हो गये। यह समस्त ज्ञानियों का व्यवहार है— चाहे उन्होंने कपड़े उतारे हों, या न उतारे हों; लेकिन समस्त ज्ञानी नग्न खड़े हो जाते हैं। जैसे हैं वैसे खड़े हो जाते हैं - बालवत, स्वाभाविक । 'जो ज्ञानी स्वभाव से व्यवहार में भी लोकवत व्यवहार नहीं करता... ' जो साधारण स्थितियों में भी भीड़ का आचरण, अंधानुकरण नहीं करता, जिसके होने में एक निजता है, जिसके होने में अपने स्वभाव की एक धारा है, स्वच्छंदता है, जिसका स्वयं का गीत है, जो तुम्हारे अनुसार अपने को नहीं ढालता । अब तुम जरा देखो, तुम्हारे मुनि हैं, तुम्हारे महात्मा हैं, वे तुम्हारे अनुसार अपने को ढाले बैठे हैं। इसलिए तुम उनकी पूजा कर रहे हो। तुमने महावीर की पूजा नहीं की, महावीर को पत्थर मारे और जैन मुनि की पूजा कर रहे हो। क्योंकि महावीर ने तुम्हारे अनुसार अपने व्यवहार को नहीं ढाला। ह तो अपनी उदघोषणा की। जैसे थे वैसी उदघोषणा की। वे तुम्हें न रुचे लेकिन तुम्हारा जैन मुनि तुम्हें रुचता है। क्योंकि वह तुम्हारा अनुयायी है। तुम जैसा कहते हो वैसा व्यवहार करता है। तुम कहते हो मुंह पर पट्टी बांधो तो मुंह पर पट्टी बांधकर बैठ जाता है; चाहे सर्कसी मालूम पड़े लेकिन मुंह पर पट्टी बांधकर बैठ जाता है। तुम जैसा कहते हो वैसा उठता, वैसा बैठता, वैसा चलता। वह बिलकुल आज्ञाकारी है। इतने आज्ञाकारी व्यक्तियों को तुम पूजा न दो तो किसको पूजा दो ? उनका व्यवहार लोकवत है, स्वाभाविक नहीं है । स्वाभाविक होने का तो अर्थ हुआ क्रांतिकारी । स्वभाव तो सदा विद्रोही है। स्वभाव का तो अर्थ हुआ कि जैसी मौज होगी, जैसा भीतर का भाव होगा, जैसी लहर होगी। स्वाभाविक आदमी तो लहरी होता है। उसके ऊपर कोई आचरण के बंधन और मर्यादायें नहीं होतीं। इसीलिए तो राम को तुम याद करते हो, कृष्ण को हटाकर रखा है। कृष्ण का व्यवहार स्वाभाविक है, राम का व्यवहार मर्यादा का है। राम हैं मर्यादा पुरुषोत्तम । कृष्ण का व्यवहार बड़ा भिन्न है। कृष्ण का व्यवहार अनूठा है। कोई मर्यादा नहीं है, अमर्याद है। कृष्ण स्वच्छंद हैं। तो राम ज्यादा से ज्यादा मूढ़ कौन, अमूढ़ कौन! 341
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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