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________________ किंतना ही अभिनय करो, कोई न कोई बात कहीं न कहीं से बहकर निकल आयेगी। क्योंकि तुम जो हो उसको ज्यादा देर झुठलाया नहीं जा सकता। जिएफ कहता था कि मेरे पास कोई आदमी तीन घंटे रह जाये तो मैं जान लेता हूं क्या है उसकी असलियत। क्योंकि तीन घंटे तक भी अपने झूठ को खींचना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए तो धोखा होता है। जिनसे तुम रास्ते पर मिलते हो, जिनसे सिर्फ संबंध 'जैरामजी' का है, उनको तुम समझते हो, बड़े सज्जन हैं। रास्ते पर मिले, 'जैरामजी' कर लिया, अपने-अपने घर चल गये । उतनी देर के लिए आदमी सम्हाल लेता है। मुस्कुरा दिया, तुम्हें देखकर प्रसन्न हो गया, बाग-बाग हो गया । और तुमने कहा, कैसा भला आदमी है ! जरा पास आओगे तब भलाई-बुराई पता चलनी शुरू होगी। निकट आओगे तब कठिन होने लगेगा। यही तो रोज सारी दुनिया में होता है। किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गये, कोई स्त्री तुम्हारे प्रेम में पड़ गई, तब दोनों कितने सुंदर ! और दोनों का प्रेम कैसा अदभुत ! ऐसा कभी पृथ्वी पर हुआ नहीं और कभी होगा भी नहीं । · फिर विवाह कर लो, फिर धीरे-धीरे जमीन पर उतरोगे। असलियत प्रगट होना शुरू होगी। वह जो ऊपर-ऊपर का आवरण था, वह जो लीपा-पोता आवरण था, वह टूटेगा। क्योंकि कितनी देर उसे खींचोगे? असलियत निकलकर रहेगी। आरोपण थोड़ी-बहुत देर चल सकता है, असलियत प्रगट होकर रहेगी। तो जो दो व्यक्ति करीब-करीब रहेंगे तो असलियत प्रगट होनी शुरू होती है। दूर-दूर से सभी ढोल सुहावने मालूम होते हैं। ज्ञानी की यही खूबी है कि वह स्वभावात, स्वभाव से... स्वभाव का अर्थ होता है, जाग्रत होकर जिसने स्वयं को जाना, पहचाना, जिसकी अंतर्प्रज्ञा प्रबुद्ध हुई, जिसके भीतर का दीया जला, जो अब अपने स्वभाव को पहचान लिया। अब इससे अन्यथा होने का उपाय न रहा। अब तुम उसे कैसी भी स्थिति में देखोगे, तुम उसे हमेशा अपने स्वभाव में थिर पाओगे । 'जो ज्ञानी स्वभाव से व्यवहार में भी सामान्य जन की तरह नहीं व्यवहार करता और महासरोवर की तरह क्लेशरहित है वही शोभता है।' संस्कृत में जो शब्द है वह है, लोकवत । वह 'सामान्य जन' से ज्यादा बेहतर है। लोकवत का अर्थ होता है भीड़ की भांति । जो भीड़ की तरह व्यवहार नहीं करता । भीड़ का व्यवहार क्या है? भीड़ का व्यवहार धोखा है । हैं कुछ दिखाते कुछ हैं कुछ बता कुछ । कहते कुछ, करते कुछ। दूर-दूर से एक मालूम होते हैं, पास आओ, कुछ और मालूम होते हैं। दूर से तो चमकते सोने की तरह, पास आओ तो पीतल भी संदिग्ध हो जाता है कि पीतल भी हैं या नहीं। हो सकता है, पीतल का भी पालिश ही हो। भीड़ का व्यवहार धोखे का व्यवहार है, प्रवंचना का व्यवहार है। ज्ञानी सहज होता, नग्न होता । जैसा है वैसा ही होता है । रुचे तो ठीक, नं रुचे तो ठीक। तुम्हारे कारण ज्ञानी अपने को किन्हीं ढांचों में नहीं ढालता । तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुकूल व्यवहार नहीं करता । जैसा है वैसा ही व्यवहार करता है । रुचे ठीक, न रुचे ठीक। ज्ञानी तुम्हें देखकर 340 अष्टावक्र: महागीता भाग-5 N
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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