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________________ पक्का न होगा। तो अपनी भूल सुधारूं । और उसके भी बेटे उसके पीछे रहेंगे। और बेटों के बेटे, और बेटों के बेटे – धीरे-धीरे पर्तें जमती जायेंगी । समय हजार धूलें जमा देगा। हजार साल बाद किसी की जरूरत होगी कि कोई नया झरोखा खोले और तुम्हें पुकारे कि तुम कहां खड़े हो? वहां कुछ भी नहीं है, दीवाल है । और मैं तुमसे कहता हूं, वह ठीक ही करेगा। उस वक्त जो मेरे झरोखे पर खड़े हुए पुरोहित बन गये होंगे वे नाराज होंगे। वे शोर-गुल मचायेंगे, क्योंकि उनके आदमी हटने लगेंगे। वे कहेंगे, यह निंदा, आलोचना सदगुरु करते ही नहीं। यह कैसी बात ? हम भी ठीक, तुम भी ठीक, ऐसा पुरोहित कहते हैं। क्योंकि पुरोहित राजनीति में है। वह कहता है, तुम्हारे आदमी तुम्हारे पास रहें, हमारे आदमी हमारे पास रहें। हम भी ठीक, तुम भी ठीक। न तुम हमारे आदमी छीनो, न हम तुम्हारे आदमी छीनें। ऐसा समझौता है। ऐसा षड्यंत्र है। और जब कोई सदगुरु पैदा होगा तो वह चिल्लाकर कहेगा कि छोड़ो सब झरोखे । नई रोशनी उतरी है, आओ। मैं या पैगाम ले आया, नया पैगंबर आया हूं, आओ। तब नाराजगी होगी। इन झरोखों पर खड़े हुए जो पंडित-पुरोहित हैं वे भी सदगुरुओं का दावा करते हैं कि वे भी सदगुरु हैं। वे सिर्फ पुरानी साख पर जी रहे हैं। तुम जाओ, देखो अपने जैन मुनि को, पुरी के शंकराचार्य को, वेटिकन के पोप को । जीसस ने जो साख पैदा की थी उसके आधार पर दो हजार साल बीत गये हैं, पोप उसी आधार पर जी रहा है। पोप के जीवन में जीसस जैसा कुछ भी नहीं है । कोई रोशनी नहीं है। लेकिन अब प्रतिष्ठा है। पुरानी दूकान है, दूकान की प्रतिष्ठा है। नाम भी बिकता है न दूकान का ! पुरानी दुकान की तख्ती लगा लो तो बिक्री चलती है। साख पैदा हो जाती है, क्रेडिट पैदा होती । दो हजार साल पुराना, तो दो हजार साल की क्रेडिट है। और सबसे पहले जीसस का स्मरण अभी तक ताजा है। हिंदू खड़े हैं, शंकराचार्य हैं पुरी के । एक हजार साल पुरानी... आदि शंकराचार्य ने जो विरासत पैदा की थी उसका सहारा है। कृष्णमूर्ति के पास तो कोई सहारा नहीं। मेरे पास तो कोई सहारा नहीं। हम किसी पुरानी दूकान के मालिक नहीं हैं। हमें तो चिल्लाकर कहना होगा कि ये सब गलत हैं। और जब हम चिल्लाकर कहेंगे, ये सब गलत हैं, तो हिंदू भी नाराज होगा, मुसलमान भी नाराज होगा, ईसाई भी नाराज होगा। स्वभावतः नाराज बहुत लोग हो जायेंगे। क्योंकि सभी पंडे-पुरोहित नाराज होंगे। और उन दूकानों पर बैठे हुए जो लोग सदगुरु होने का धोखा खा रहे हैं और धोखा दे रहे हैं वे भी नाराज होंगे। और स्वभावतः तुम्हें लगेगा कि जिस आदमी का हिंदू गुरु भी विरोध करते हैं, मुसलमान गुरु भी विरोध करते हैं, ईसाई गुरु भी विरोध करते हैं, यहूदी गुरु भी विरोध करते हैं, जैन गुरु भी विरोध करते हैं, वह ठीक कैसे हो सकता है! लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, इसको तुम कसौटी समझना । जब पुरानी सारी दूकानें किसी एक आदमी का विरोध करें तो खयाल रखना, उस आदमी में कुछ होगा। नहीं तो इतने लोग विरोध न करते । कुछ होगा प्रबल आकर्षण । क्योंकि पुराने सायेदार, पुराने सरमायेदार, पुराने ठेकेदार घबड़ा गये हैं, बेचैन हो गये हैं । सदगुरुओं के अनूठे ढंग कांप उठें कसरेशाही के गुंबद थरथराये जमीं मोबदों की 305
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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