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________________ गई हों, सदियों ने धूल जमा दी हो, लेकिन लोग वहीं अटके हैं। जब कोई नया झरोखा खोलता है तो खयाल रखना, उसे उन्हीं लोगों में से अपने संगी-साथी खोजने पड़ते हैं, जो किन्हीं झरोखों पर पहले से अटके हैं। इसलिए आलोचना बिलकुल जरूरी हो जाती है। समझो कि मैंने एक झरोखा खोला। जब मैंने झरोखा खोला तो कोई हिंदू था, कोई मुसलमान था, कोई ईसाई था, कोई जैन था, सब लोग पहले से ही बंटे थे। इनको बुलाओ कैसे? इनको पुकारो कैसे? अगर मैं यह कहूं कि जहां-जहां तुम खड़े हो, बिलकुल ठीक खड़े हो तो मैंने जो झरोखा खोला है जो अभी ताजा है, कल उस पर भी धूल जम जायेगी। और ये लोग जिन झरोखों पर खड़े हैं, ये भी कभी ताजे थे, अब धूल जम गई है। अब वहां से कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। मगर खड़े हैं; पुरानी आदत के वश खड़े हैं। इनके बाप खड़े रहे, उनके बाप खड़े रहे, बाप के बाप खड़े रहे, ये भी खड़े हैं। क्यू में वहां आ गये हैं। क्यू सरकता-सरकता आ गया है, वे भी उसी में लगे-लगे झरोखे पर आ गये हैं। __ कुछ दिखायी नहीं पड़ता तो सोचते हैं, अपनी आंख में खराबी होगी। हमारे पिता को दिखाई पड़ता था, पिता के पिता को दिखाई पड़ता था, पुरखों को दिखाई पड़ता था। हमको नहीं दिखाई पड़ता है, हमारा कोई पाप, कोई कर्म, आंख पर कोई गड़बड़, हम अंधे होंगे, जीवन में कुछ बुराई होगी। चरित्र को सुधारेंगे, नीति को बदलेंगे तब दिखाई पड़ेगा। समय आयेगा, प्रभु की कृपा होगी, तब दिखाई पड़ेगा। ऐसे अपने को समझाते हैं और अंधे की तरह खड़े हैं। और झरोखे पर सदियों.की धूल जमी है। जब मैंने नया झरोखा खोला तो और सारे लोग तो बंटे थे। इनको पुकारने का क्या उपाय था? इनको पुकारने का एक ही उपाय था कि तुम जहां खड़े हो वहां से सत्य का दर्शन नहीं होगा। तुम आ जाओ, जहां मैं खड़ा हूं। नया झरोखा खुला है। नया झरना खोदा है। तुम आओ और पी लो और तृप्त हो जाओ। और जल्दी ही यहां भी धूल जम जायेगी। तुम जो मेरे पास आये हो, तुमने तो चुनाव किया है। तुम्हारे बच्चे क्यू में लगे आयेंगे। तुम संन्यास ले लेते हो, तुम्हारा छोटा बच्चा भी संन्यास लेने को आतुर हो जाता है—सिर्फ अनुकरण करने के लिए। जब पिता ने ले लिया, मां ने ले लिया तो वह भी गैरिक वस्त्र पहनना चाहता है। वह भी माला डालना चाहता है। च्चे तो अनुकरण करने में बड़े कुशल होते हैं। वे भी क्य में खड़े हो जाते हैं। तम तो मेरे आकर्षण से आये हो। तुमने तो चुनाव किया है। तुमने तो साहस किया, हिम्मत जुटाई। तुम तो कोई झरोखा छोड़कर आये हो। तुम हिंदू थे, मुसलमान थे, जैन थे, ईसाई थे, तुम कोई तो थे ही। तुम किसी झरोखे पर खड़े थे, किसी शास्त्र को पकड़े थे। तुमने कुछ त्याग किया है। तुम कुछ छोड़कर आये हो। तुमने कुछ सुविधायें छोड़ी हैं। तुमने असुविधा हाथ में ली है। तुमने सुरक्षा छोड़ी है, असुरक्षा चुनी है। तुमने हिम्मत की है। तुम अज्ञात में उतरने का साहस किये हो। तुमने एक अभियान किया है। लेकिन तुम्हारा बच्चा तो तुम्हारे पीछे, तुम्हारे अंगरखे को पकड़े चला आया है। जब मैं जा चुका होऊंगा और इस झरोखे पर धूल लगने लगेगी और तुम भी जा चुके होगे और धूल की पर्ते जम जायेगी तब भी तुम्हारा बेटा यहीं खड़ा रहेगा। वह कहेगा, हमारे पिता को दिखाई पड़ता था। अगर मुझे दिखाई नहीं पड़ता तो मेरी कोई भूल होगी। तो अपनी भूल सुधारूं। मेरा संन्यास सच्चा न होगा। मेरा ध्यान 304 अष्टावक्र: महागीता भाग-51
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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