SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवां प्रश्नः भीतर कोई अंकुर जन्म ले चुका है, जो बीज के टूटने की प्रतीक्षा कर रहा है। कब वह बीज टूटेगा और धरती में मिलेगा? कब ये कान तुझे सुनने में समर्थ होंगे? भगवान, मुझ पर सदा आपकी विजय हो! संत अगस्तीन ने अपनी एक प्रार्थना में | कहा है कि प्रभु, मैं न जीतूं, इसका तू ध्यान रखना। तू ही जीते, इसका तू ध्यान रखना। और ऐसा भी नहीं है कि मैं जीतने की कोशिश न करूंगा। मैं तो कोशिश करूंगा, लेकिन भूलकर भी मुझे जीतने मत देना। जीते तू ही। मेरी कोशिश अकारथ जाये। और फिर भी मैं तुझसे कहता हूं कि मेरी प्रार्थना तो ठीक, लेकिन मैं कोशिश करूंगा, मैं जीतने की कोशिश करूंगा; मैं तुझसे लडूंगा, मैं तुझे हराने के उपाय करूंगा, लेकिन तू दया मत करना। ठीक बात कही है। ठीक बात आनंद ने भी कही है—भगवान, मुझ पर सदा आपकी विजय हो! स्वाभाविक है कि तुम जीतना चाहो। गुरु से भी शिष्य जीतना चाहता है। जीत की ऐसी प्रबल आकांक्षा है, अहंकार का ऐसा रस है। लेकिन जीत न पाओ, यही तुम्हारा सौभाग्य है। जीत गये तो हार गये। हार गये तो जीत गये। काबा जाओ, काशी जाओ गंगा में डुबकियां लगाओ दिल का देवालय गंदा तो फंदा सारा धरम-करम है इस दिशा से उस दिशा तक सब जगह है प्यार फैला सब जगह है एक हलचल सब जगह है एक मेला है नहीं कोई न जिसके शीश हो छाया किसी की एक मैं ही जो यहां बिलकुल अपरिचित औ' अकेला सांस तक अपनी अजानी लाश तक अपनी बिरानी तुम गहो यदि बांह तो सब स्वर्ग बांहों में समाये तुम मिलो तो जिंदगी फिर आंख में काजल लगाए शिष्य होने का अर्थ है, दे दिया अपना हाथ गुरु के हाथ में। शिष्य होने का अर्थ है, दे दिया अपना दिल का देवालय साफ करो 263
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy