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________________ नहीं, आखें खोलो। और कोई तुम्हें अंधा नहीं बना रहा है। कोई तुम्हें अंधा बना नहीं सकता है। किसी की सामर्थ्य नहीं तुम्हें अंधा बनाने की। सिर्फ तुम्हारी सामर्थ्य है। तुम चाहो तो अनंतकाल तक अंधे रह सकते हो। यह तुम्हारा निर्णय है । तुमने तय कर रखा है आंख न खोलने का, तुम्हारी मर्जी । लेकिन दोष किसी और को मत दो। ये तरकीबें छोड़ो। तुम क्रोधी हो, दूसरे को दोष देते हो कि इस आदमी ने क्रोध करवा दिया। इसने एक ऐसी बात कही कि हमको क्रोध आ गया। अगर तुम अक्रोधी होते, यह कितनी ही बात कहता तो भी क्रोध न आता। तुम जरा खाली कुएं में डालो रस्सी बांधकर बालटी, और खूब खड़खड़ाओ, और खूब खींचो जितनी मर्जी हो, पानी भरकर न आयेगा । बालटी खाली जायेगी, खाली लौट आयेगी। जिसके भीतर क्रोध नहीं उसे गाली दो, डालो बालटी, खूब खड़खड़ाओ गाली को, खाली लौट आयेगी। जिसके भीतर क्रोध भरा है उसमें से ही क्रोध आता । गाली ज्यादा से ज्यादा निमित्त हो जाती । और अगर तुम मनोवैज्ञानिकों से पूछो तो वे तो कुछ और बड़ी बात कहते हैं। वे तो यह कहते हैं कि अगर तुम्हें कोई क्रोध न दिलवाये और क्रोध तुम्हारे भीतर भरा हो तो तुम कुछ न कुछ बहाना खोजकर उसे बाहर निकाल कर रहोगे । बालटी भी कोई न डाले तो भी कुआं जो भरा है वह उछल रहा है। वह तरकीब खोजेगा कोई न कोई । किसी बहाने चढ़कर पानी बाहर आयेगा । तुमने भी कई दफा देखा होगा, खुजलाहट उठती है कि हो जाये किसी से टक्कर। अब यह भी कोई...! कुछ भीतर से उमगने लगता है, लड़ने को फिरने लगते हो। वही घड़ी तुम्हें पता होगी, जब तुम चाहते हो कि कहो, आ बैल सींग मार। कोई बैल सींग न मारे तो नाराजगी होती है। मुल्ला नसरुद्दीन शांत बैठा था अपने घर में । और पत्नी एकदम उस पर टूट पड़ी और अब तुम मुझे और न भड़काओ। अरे, नसरुद्दीन ने कहा, हद हो गई। मैं अपना शांत बैठा अपना हुक्का गुड़गुड़ा रहा हूं, एक शब्द नहीं बोला। शब्द न निकले इसलिए हुक्के को मुंह में डाले बैठा हूं, और तू कहती है और भड़काओ। बात क्या है? उसने कहा, इसीलिये तो ! इसीलिये कि तुम इतने चुप बैठे हो कि इससे भड़कावा पैदा होता है। बोलो कुछ। चुप बैठने का मतलब? बैठे-बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे हो और मैं यहां मौजूद हूं! आदमी न बोले तो फंसता, बोले तो फंसता। लोग तैयार हैं। लोग उबले बैठे हैं, कोई भी बहाना चाहिए। बहाना न मिले तो बहाने की तलाश में निकलते हैं। अगर बिलकुल भी बहाना न मिले, कोई बहाने का उपाय भी न हो, अगर तुम उन्हें एक कमरे में बिठा दो तो तुम भी चकित हो जाओगे...। मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग किये हैं। किसी आदमी को सात दिन के लिए एकांत में रख दिया। भोजन सरका देते हैं दरवाजे से, कोई बोलता नहीं, कोई चालता नहीं । सब इंतजाम है। शांति से रहे, स्नान करे, भोजन करे, विश्राम करे। मगर उस आदमी से कहा है कि वह रोज लिखता रहे कि कब उसे क्रोध आया। अब क्रोध का कोई कारण ही नहीं है, लेकिन आदमी डायरी में लिखता है कि क्रोध आया आज शाम को कोई कारण न था तो अतीत में से कोई कारण खोज लिया, कि तीस साल पहले फलां आदमी गाली दी थी। वह अभी भी जल उठता है । तुम बहाने खोज रहे हो। अंधे तुम हो। अंधे तुम होना चाहते हो। अंधे होने में तुम्हारा स्वार्थ तुमने समझ रखा है। तुमने न्यस्त स्वार्थ बना रखा है। तुम सोचते हो यही एक होने का ढंग है। फिर तुम मन तो मौसम-सा चंचल 195
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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