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________________ हूं, ज्यादा समझा भी न सकूँगा। उत्सुक हो गये लोग। उन्होंने कहा, अब जा ही रहे हो, यह उलझन मत छोड़ जाओ, वरना हम सदा पछतायेंगे। जरा-से में कह दो। अभी तो कुछ सांसें बाकी हैं। उसने कहा, इतना ही समझो कि एक नदी के किनारे बैठा था और एक कुत्ता आया। बड़ा प्यासा था, हांफ रहा था। नदी में झांककर देखा, वहां उसे दूसरा कुत्ता दिखाई पड़ा। घबड़ा गया। भौंका, तो दूसरा कुत्ता भौंका। लेकिन प्यास बड़ी थी। प्यास ऐसी थी कि भय के बावजूद भी उसे नदी में कूदना ही पड़ा। वह हिम्मत करके...कई बार रुका, कंपा, और फिर कूद ही गया। कूदते ही नदी में जो कुत्ता दिखाई पड़ता था वह विलीन हो गया। वह तो था तो नहीं, वह तो केवल उसकी ही छाया थी। नदी के किनारे बैठे देख रहा था, मैंने उसे नमस्कार किया। वह मेरा पहला गुरु था। फिर तो बहुत गुरु हुए। उस दिन मैंने जान लिया कि जीवन में जहां-जहां भय है, अपनी ही छाया है। और प्यास ऐसी होनी चाहिए कि भय के बावजूद उतर जाओ। ___ मेरे पास लोग आते हैं; वे कहते हैं, संन्यास तो लेना है लेकिन भय लगता है। जब भय न लगेगा तब लेंगे। फिर कभी न लेंगे। ऐसी कभी घड़ी आयेगी, जब भय न लगेगा? भय के बावजद लेंगे तो ही लेंगे। तम सोचते हो, जिन्होंने लिया उनको भय नहीं लगता? वे भी तुम जैसे आदमी हैं, उन्हें भी भय लगता है। लेकिन इतना ही फर्क है कि उन्होंने कहा. ठीक है. भय लगता रहे. लेंगे. लेकर रहेंगे। उनकी प्यास गहरी है। डर तो लगता है, लेकिन प्यास इतनी गहरी है कि करो भी क्या? डरो या प्यासे मरो; दो में चुनाव करना है। प्यास इतनी गहरी है कि भय को एक तरफ रख देना पड़ता है। और जो • भय को एक तरफ रख देता है उसका ही भय मिटता है। भय अनुभव से मिटेगा। और तुम कहते हो, अनुभव हम तभी लेंगे जब भय मिट जाये। तब बड़ी मुश्किल हो गई। तुमने एक ऐसी शर्त लगा दी जो कि कभी पूरी नहीं हो सकती। मुल्ला नसरुद्दीन तैरना सीखना चाहता था। तो किसी पड़ोसी ने कहा, यह कोई बड़ी बात नहीं। इतना शोरगुल क्यों मचाते हो? आओ मेरे साथ, मैं सिखा देता हूं। गये नदी के किनारे। सीढ़ी पर ही काई जमी थी, मुल्ला का पैर फिसल गया और धड़ाम से गिरा। गिरते ही उठा और भागा घर की तरफ। वह जो सिखाने ले गया था जो उस्ताद-उसने कहा, अरे, कहां भागे जा रहे हो? सीखना नहीं है? मुल्ला ने कहा, अब जब तैरना सीख लूंगा तभी नदी के पास आऊंगा। यह तो झंझट है। पैर फिसल गया, चारों खाने चित्त हो गये, और कहीं नदी में गिर जाते तो जान से हाथ धो बैठते। तेरा क्या भरोसा! वक्त पर काम आये, न आये। अब आऊंगा नदी के पास, लेकिन तैरना सीखकर।। अब तैरना कोई गद्दे-तकियों पर थोड़े ही सीखता है। कितना ही हाथ-पैर पटको अपने गद्दे पर लेटकर-सुविधा तो है, खतरा कोई भी नहीं है, लेकिन जहां खतरा नहीं वहां सीख कहां? खतरे में ही सीख है। खतरे में ही अनुभव है। जितना बड़ा खतरा है, जितनी बड़ी चुनौती है उतनी ही बड़ी संपदा छिपी है। अब तुमने अगर यह कसम ले ली कि जब तक तैरना न सीख लेंगे, नदी न आयेंगे, तुम तैरना कभी सीखोगे ही नहीं। तैरना सीखना हो तो बिना तैरना जाने नदी में उतरने की हिम्मत रखनी पड़ती है। और किसी पर भरोसा करना पड़ता है। जो भी तुम्हें सिखाने जायेगा उस पर भरोसा करना पड़ेगा। भरोसे का कोई कारण नहीं है; क्योंकि क्या पता, जब तुम डूबने लगो, यह आदमी बचाये कि भाग मन तो मोसम-सा चंचल 189
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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