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________________ को नहीं माननेवाला है। और वही स्वस्थचित्त है।' भावस्य भावकः कश्चिन्न किंचिद्भावकोऽपरः। उभयाभावकः कश्चिदेवमेव निराकुलः।। कोई है, जो कहता है, ईश्वर है। कोई है, जो कहता है, ईश्वर नहीं है। अष्टावक्र कहते हैं, दोनों अज्ञानी हैं। क्योंकि जो है, न तो 'है' में समाता है, और न 'नहीं है' में समाता है; न भाव में न अभाव में; न ऐसा कहने में न वैसा कहने में; न स्वीकार में न अस्वीकार में। जो है वह इतना विराट है कि सिर्फ शून्य में समाता है, सिर्फ मौन में समाता है। बोले कि चूके। कहा कि गया। सत्य अभिव्यक्त किया कि विकृत हुआ। लाओत्सु ने कहा है, सत्य को कहा कि फिर सत्य न रहा। कहते ही असत्य हो गया। तुमने कहा हां, तुमने कहा ना, विभाजन शुरू हो गया। नहीं हां नहीं ना; न आस्तिकता न नास्तिकता। ऐसा भी कोई है, अष्टावक्र कहते हैं, जो न हां में पड़ता, न ना में पड़ता, दोनों के पार खड़ा है, वही स्वस्थचित्त है। . ___ हां कहा, चल पड़े। उपद्रव शुरू हुआ। तुमने कहा, ईश्वर है तो अब तुम लड़ने लगे उससे, जो कहता है ईश्वर नहीं है। लड़ाई शुरू हो गई। और तुमने कहा, ईश्वर है तो तुमने मन का एक वक्तव्य दिया। क्योंकि हां और ना मन की घोषणायें हैं। और इससे विवाद पैदा होगा। सिद्धांत, संप्रदाय, शास्त्र पैदा होगा। उलझन शुरू हुई। तुम्हें तर्क जुटाने पड़ेंगे कि ईश्वर है। और अब तक कोई तर्क नहीं जुटा पाया; एक बात ध्यान रखना। न तो ईश्वरवादी तर्क जुटा पाये कि ईश्वर है, और न अनीश्वरवादी तर्क जुटा पाये कि ईश्वर नहीं है। कोई सिद्ध नहीं कर पाया। न नास्तिक सिद्ध कर पाया न आस्तिक। एक गांव में ऐसा हुआ कि एक महाआस्तिक में और एक महानास्तिक में विवाद हो गया। आस्तिक और नास्तिक दोनों महान थे और बड़े प्रकांड विवादी थे। सारा गांव विवाद देखने इकट्ठा हुआ और सारा गांव खुश भी था कि किसी तरह निपटारा हो जाये। क्योंकि उन दोनों की वजह से गांव भी परेशान था। दोनों के बीच जो कशमकश थी उसमें गांव के लोग भी पिसे जाते थे, क्योंकि इधर खींचे जाते, उधर खींचे जाते। आस्तिक अपनी तरफ खींच लेता तो नास्तिक अपनी तरफ खींचने की कोशिश करता। ऐसे गांव में दलबदली होती रहती। और गांव में बड़ा विवाद था और झगड़ा-फसाद था। गांव पूरा खुश हुआ, उसने कहा, ये दोनों निपट लें। कुछ भी तय हो जाये तो हमारी झंझट मिटे। तुम सोचो न! अगर मुसलमान और हिंदुओं के पंडित-पुरोहित निपट लें तो तुम्हारी तो झंझट मिटे। यह मंदिर-मस्जिद का झगड़ा तो मिटे। एक बार सारे धर्मगुरु इकट्ठे हो जायें और फैसला कर लें, विवाद कर लें, जो जीत जाये सो ठीक; तो बाकी दुनिया भर की परेशानी तो कटे। तो गांव के लोग बड़े खुश थे, वे सब इकट्ठे हुए। मगर खुशी ज्यादा देर न टिकी। सुबह होते-होते सब गड़बड़ हो गई। गड़बड़ यह हुई, आस्तिक ने ऐसे तर्क दिये कि नास्तिक राजी हो गया और नास्तिक ने ऐसे तर्क दिये कि आस्तिक राजी हो गया। फिर वही झंझट। आस्तिक नास्तिक हो गया, नास्तिक आस्तिक हो गया, मगर झंझट जारी रही। गांव ने सिर पीट लिया। उसने कहा, यह इसका कोई हल नहीं है। इतनी बड़ी बदलाहट हो गई कि नास्तिक आस्तिक हो गया, आस्तिक नास्तिक हो गया, मगर गांव की मुसीबत वही की वही रही। 176 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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