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________________ में उठकर कालेज की लायब्रेरी में जा सकते हैं और अपना उत्तर खोज सकते हैं। चोरी का कोई उपाय नहीं रहा। ___ और बड़ी हैरानी की बात है, फिर भी बुद्धिमान बुद्धिमान सिद्ध होते हैं, मूढ़ मूढ़ सिद्ध होते हैं। क्योंकि उत्तर भी तो खोजना पड़ेगा। किताबें ले आकर क्या करोगे? लायब्रेरी में भी जाओगे तो आखिर किताब तो खोजनी पड़ेगी, उसमें से उत्तर तो निकालना पड़ेगा। प्रश्न तो समझना पड़ेगा कम से कम पहले, फिर उसका ठीक-ठीक उत्तर खोजना होगा। चोरी का उपाय भी खतम कर दिया उन्होंने और फर्क कुछ भी नहीं पड़ा है। अब भी पता चल जाता है कौन प्रथम कोटि का, कौन द्वितीय कोटि का, कौन तृतीय कोटि का। आज नहीं कल सारी दुनिया में यही होगा। किताबें लाने की आज्ञा दें देनी चाहिए, कोई अड़चन नहीं है। आखिर वह अपनी बुद्धि से ही खोजेगा न उत्तर! उससे ही पता चल जायेगा कि कैसा उत्तर उसने खोजा है। उसकी बुद्धि का ही पता लगाना है। जो सुनकर ही समझ ले...। बुद्ध कहते थे, कुछ घोड़े होते हैं, जिनको मारो तब चलते हैं। कुछ घोड़े होते हैं जिनको कोड़ा फटकारो, चलते हैं। कुछ घोड़े होते हैं जो कोड़ा हाथ में देख लेते हैं तो चलते हैं; फटकारने की जरूरत नहीं होती। और कुछ घोड़े होते हैं कुलीन, वस्तुतः जिनको हम घोड़े कहें, वे कोड़े की छाया देखकर भी काफी अपमानित हो जाते हैं। कोड़ा तो दूर, कोड़े की छाया काफी होती है। इशारा बहुत होता है। एक आदमी बुद्ध के पास आया, उसने बुद्ध के चरण छुए और बुद्ध से उसने कहा, शब्द में मुझे न कहें। शब्द मैं बहुत सुन चुका। और चुप रहकर भी मुझे मत कहें, क्योंकि चुप को मैं समझ पाऊं ऐसी मेरी अभी सामर्थ्य नहीं। अब तुम कहोगे, बड़ी उलझन में डाल दिया होगा बुद्ध को। शब्द में मत कहें, क्योंकि शब्द मैं बहुत सुन चुका, कुछ पकड़ में आता नहीं। और चुप रहकर भी न कहें, क्योंकि चुप मैं समझ पाऊं ऐसी मेरी सामर्थ्य कहां? बुद्ध मुस्कुराये। बुद्ध ने आंखें बंद कर लीं। वह आदमी भी आंख बंद करके बैठा रहा। घड़ी आधा-घड़ी बीती, वह आदमी उठा, उसने बुद्ध के चरण छए और कहा, धन्यवाद। आपने मार्ग दिखा दिया। वह आदमी चला गया। बुद्ध के पास जो शिष्य बैठे थे वे तो बड़े हैरान हुए, यह हुआ क्या? इन दोनों के बीच घटा क्या? चालीस साल से साथ रहनेवाला आनंद भी बैठा था, उसने कहा, यह तो हद हो गई। चालीस साल से मैं आपके साथ हूं, न तो सुनकर समझ आया कि आप जो कहते हैं वह क्या कह रहे हैं; और आपको चुप भी बैठे देखता हूं तो भी समझ में नहीं आता। और इस आदमी को क्या हआ? यह धन्यवाद देकर चला गया। तो बुद्ध ने कहा, घोड़े कुछ होते हैं, मारो तो मुश्किल से चलते हैं। कुछ होते हैं, कोड़ा फटकारो, चल जाते हैं। कुछ होते हैं, कोड़ा देखकर ही चल जाते हैं और कुछ होते हैं जो कोड़े की छाया से ही चल जाते हैं। यह आखिरी किस्म का घोड़ा है। कोड़े की छाया काफी है। यह चल पड़ा। इसकी यात्रा शुरू हो गई। यह पहुंचकर रहेगा आनंद। महावीर कहते हैं, अगर सम्यक श्रवण हो तो बस काफी है। कृत्य की तो जरूरत तब पड़ती है जब श्रवण से न हो सके। तो फिर कोड़े मारने पड़ते हैं। उपवास से मारो, आग जलाकर मारो, ठंड 174 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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