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________________ जो काल के निष्ठुर हृदय पर उंगलियों से लिख दें अमिट लेख हम वे लोग हैं जो मौत की ठंडी उंगलियों में भर दें जिंदगी के गीत हम हवाओं में तैरते इस पार से उस पार तक अनिबंध हम वे लोग हैं जिन्हें छांट दो तो अमरबेल-सा उग आयें जिन्हें बांध दो तो गंध-सा बस जायें जिन्हें जला दो तो आकाश में छा जायें हम तुम्हारी आत्माओं की प्रज्वलित शिखाएं तुम्हारी आवाज के आधार का मूलतत्व तुम्हारी मुट्ठियों में रची-बसी आस्थायें हम वे लोग हैं जो हवा में भर जाते हैं अवाम में छा जाते हैं होठों पर भा जाते हैं चेहरों पर आ जाते हैं हम वे लोग हैं जो घोल दें खुशबू हवा में जो काल के निष्ठुर हृदय पर उंगलियों से लिख दें अमिट लेख शाश्वत तुम्हारे भीतर पड़ा है। तुम अमरबेल हो। कितने बार जन्मे, कितने बार मरे, फिर भी मिटे नहीं। मिटना तुम्हारा स्वभाव नहीं। अव्यय! तुम कभी व्यतीत नहीं होते। तुम्हारा कभी व्यय नहीं होता। अमृत! तुम कितने ही भागते रहे हो जन्मों-जन्मों में, फिर भी तुम्हारी संपदा अक्षुण्ण तुम्हारे भीतर पड़ी है। जिस दिन जागोगे उसी दिन स्वामी हो जाओगे। जागते ही स्वामी और सम्राट हो जाओगे। घोषणा भर करनी है। अष्टावक्र की महिमा यही है कि वे तुमसे यही कह रहे हैं कि कुछ करना नहीं है, सिर्फ जरा आंख का कोण बदलना है। देखना है और घोषणा करनी है। तुम्हारे भीतर से सिंहनाद हो जायेगा। - 'जो हठपूर्वक चित्त का निरोध करता है उस अज्ञानी को कहां चित्त का निरोध है? स्वयं में रमण करनेवाले धीरपुरुष के लिए यह चित्त का निरोध स्वाभाविक है।' यह सूत्र अत्यंत आधारभूत है। ध्यानपूर्वक समझना। क्व-निरोधो विमूढ़स्य यो निर्बधं करोति वै। स्वारामस्यैव धीरस्य सर्वदाऽसावकृत्रिमः।। जो हठपूर्वक चित्त का निरोध करता है, जो जबर्दस्ती चित्त का निसेध करता है, उस अज्ञानी का चित्त कभी भी निरोध को उपलब्ध नहीं होता। दृश्य से द्रष्टा में छलांग 169
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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