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________________ कर जाये। तो फिर मैं मूढ़ सिद्ध हो जाऊंगा। इससे तो सूरदास होना अच्छा है। कम से कम लोग सूरदासजी तो कहते हैं। तुममें से अधिक ने आंखें बंद कर रखी हैं, मीच रखी हैं। खोलने से डरते हो। शुतुरमुर्गी न्याय! शुतुरमुर्ग दुश्मन को देखकर रेत में अपने मुंह को छिपा लेता है। और जब रेत में उसका मुंह छिप जाता, आंख बंद हो जाती तो वह शांत खड़ा हो जाता है। जब दुश्मन दिखाई नहीं पड़ता तो शुतुरमुर्ग का तर्क है कि होगा नहीं, इसलिए दिखाई नहीं पड़ता। यही तो बहुत लोगों का तर्क है। वे कहते हैं, ईश्वर अगर है तो दिखाई क्यों नहीं पड़ता? जब दिखाई नहीं पड़ता तो नहीं है। जो दिखाई पड़ता है, वही है। और जो दिखाई नहीं पड़ता वह नहीं है। यही तो शुतुरमुर्ग का तर्क है। शुतुरमुर्ग बड़ा नास्तिक मालूम होता है। सिर छिपाकर खड़ा हो जाता है रेत में। दुश्मन सामने खड़ा है लेकिन अब उसे दिखाई नहीं पड़ता। डर खतम हो गया। जब दुश्मन दिखाई नहीं पड़ता तो नहीं होगा। जो दिखाई नहीं पड़ता वह हो कैसे सकता है? और इस भांति शुतुरमुर्ग दुश्मन के हाथ में पड़ जाता है। आंख खुली रहती तो बचाव भी हो सकता था। भाग भी सकता था, लड़ भी सकता था, छिप भी सकता था। कुछ किया जा सकता था। आंख बंद करके रेत में सिर गड़ाकर खड़े हो गये, अब तो कुछ भी नहीं किया जा सकता। अब तो दुश्मन के हाथ में पूरी तरह पड़ गये। अब तो कमजोर दुश्मन भी हरा देगा। अब तो छोटा-मोटा दुश्मन भी नष्ट कर देगा। • आंख खोली। और आंख खोलनी हो तो धारणाओं में अपना रस मत लगाओ। धारणाओं से मत चिपटो। हिंदू, मुसलमान, ईसाई मत बनो। ईश्वर को माननेवाले, ईश्वर को न माननेवाले मत बनो। सत्य ऐसा है, सत्य वैसा है ऐसी बकवास में मत पड़ो। इतना ही कहो कि मुझे कुछ पता नहीं। मैं अज्ञानी हूं और चित्त मेरा हजार-हजार विचारों से भरा है। तो इतना ही करो कि मैं चित्त का उपाय कर लूं कि विचार शांत हो जायें, निर्विचार हो जाऊं। तो शायद मेरी आंखों पर विचारों का धुआं न होगा तो मैं देख संकू, जो है। उसे वैसा ही देख सकू जैसा है। जस का तस, जैसे का तैसा देख सकूँ। अभी तो विचार बीच-बीच में आकर सब गड़बड़ कर जाते हैं। विचार का ही तो पर्दा है। और कौन-सा पर्दा है आंख पर? इस बात को दोहरा दूं। पर्दा परमात्मा पर नहीं पड़ा है, और न सत्य पर पड़ा है। परमात्मा नग्न खड़ा है। परमात्मा दिगंबर है। पर्दा तुम्हारी आंख पर पड़ा है। आंख पर पर्दा है, परमात्मा पर पर्दा नहीं है। इसीलिए तो ऐसा होता है, एक की आंख का पर्दा हटता है तो सबको थोड़े ही परमात्मा दिखाई पडता है। अगर परमात्मा पर पर्दा होता तो उठा दिया एक ने पर्दा. सबको दिखाई पड जात बुद्ध आये, उठा दिया पर्दा; तो बुद्धओं को भी दिखाई पड़ गया। पर्दा अगर परमात्मा पर होता तो एक के उठाने से सबके लिए उठ जाता। सीधी बात है। लेकिन पर्दा हरेक की आंख पर पड़ा है। इसलिए बुद्ध जब पर्दा उठाते हैं तो उनकी ही आंख खुलती है, किसी और की नहीं खुलती। मैं पर्दा उठाऊंगा मेरी आंख खुलती है, तुम्हारी नहीं खुलती। तुम पर्दा उठाओगे, तुम्हारी आंख खुलेगी किसी और की नहीं खुलेगी। आंख पर पर्दा है। और पर्दा किस बात का है? पर्दे का तानाबाना किससे बना है? धारणाएं, अपनी बानी प्रेम की बानी 139
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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