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________________ रहा हूं। छुआ, सब तरह टटोला, खंभे की तरह है। तू पागल हो गया है? तू कहता है सूप की तरह है? जिसने सूप की तरह अनुभव किया था वह भी हंसा। उसने कहा, तुम्हारा दिमाग फिर गया है या मजाक कर रहे हो? और उनमें गलत कोई भी न था और सब गलत थे। और उनमें सही कोई भी न था और सब सही थे। यही तो मुश्किल है। सही थे थोड़े-थोड़े। ध्यान रखना, असत्य से भी ज्यादा खतरनाक होता है थोड़ा-सा सच। थोड़ा सच बड़ा खतरनाक होता है; असत्य से ज्यादा खतरनाक होता है। क्योंकि असत्य पर तो तुम्हें भरोसा भी नहीं आता। तुम खुद भी भीतर जानते हो कि है नहीं ठीक। लेकिन थोड़े सच पर तुम्हें भरोसा होता है। भरोसे की वजह से तुम जोर से पकड़ते हो, तुम लड़ने को तैयार होते हो। . अब कोई इन पांचों की आंख खोल दे। कोई डाक्टर मोदी इनका आपरेशन कर दे, और ये पांचों आंख खोलकर हाथी को देखें तो क्या होगा? पांचों अपने जिगर को थाम लेंगे। वे कहेंगे, क्षमा करो भाई। बड़ी भूल हो गई। जो जाना था वैसा नहीं है। जो जाना था वह अंश था। और अब जो पूरा जान रहे हैं उसमें अंश तो है, लेकिन पूरा अंश जैसा नहीं है। इसलिए जितनों ने भी मानकर रखा है उनकी मान्यता में एक छवि का प्रतिफलन हुआ है, छाया पड़ी है, प्रतिध्वनि हुई है। लेकिन जब तुम मूल ध्वनि सुनोगे तब तुम पाओगे, तुमने जो जाना था वह कहीं थोड़े से अंश की तरह मौजूद है—पर अंश की तरह। और तुम्हारा दावा था कि यही सत्य है, यही पूरा सत्य है। वहीं भूल हो गई। 'किसी ने माला जपी किसी ने जाम लिया सहारा जो मिला जिसको उसी को थाम लिया और अजब हाल था हरसूं नकाब उठने पर किसी ने दिल को, किसी ने जिगर को थाम लिया अंधेरे में तुमने जो पकड़ लिया—किसी ने माला और किसी ने जाम; और किसी ने राम और किसी ने रहीम; और किसी ने कुरान और किसी ने पुराण। तुमने जो पकड़ लिया है अंधेरे में, जब रोशनी होगी तो तुम बड़े तड़फोगे, बड़े रोओगे। और तब तुम्हें बड़ी बेचैनी भी होगी। इसलिए मैं तुमसे कहता है, कोई धारणा न पकड़ना। कोई धारणा ही न पकड़ना। क्योंकि अगर धारणा पकड़ ली तो पर्दा उठने में कठिनाई हो जायेगी। धारणाएं पर्दे को उठने नहीं देतीं, क्योंकि तुम्हारा न्यस्त स्वार्थ हो जाता है। तुमने जो मान्यता मान रखी है जन्मों से, उसको छोड़ने में बड़ी कठिनाई होती है। इसका अर्थ हुआ कि अब तक तुम मूढ़ थे? यह मानने का मन नहीं होता। अहंकार इसके विपरीत खड़ा होता। मैं और मूढ़? असंभव। इससे बेहतर है अंधा होना। आदमी अंधा होने में बुरा नहीं मानता। एक आदमी अंधा है तो उसे हम कहते हैं, सूरदास। और कोई मूर्ख, कोई मूढ़, उसको तो हम कोई सुंदर नाम नहीं देते। अंधे को सूरदास कहते हैं। मूढ़ को? मूढ़ के लिए हमने कोई सुंदर नाम नहीं चुना। मूढ़ के लिए तो सिर्फ गाली है। ये अहंकार के हिसाब हैं। ____ आदमी अंधा होना पसंद करेगा बजाय गलत होने के। इसको खयाल रखना। आंख न खोलेगा। क्योंकि आंख खोलने से कहीं ऐसा न हो, जो दिखाई पड़े वह मेरे अब तक के दर्शनशास्त्र को गलत 138 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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