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कोई गंभीरता नहीं रह जाती, तुम बालवत हो जाते हो, छोटे बच्चे की तरह खेलने लगते हो।
वह जो साक्षी पर रुक गया, खतरा है उस रुकने में । उस रुकने में अहंकार फिर खड़ा हो सकता है। मेरे देखे तुम जहां रुके वहीं अहंकार खड़ा हो जाएगा। रुकने का नाम अहंकार है । अहंकार का अर्थ : सीमा बन गई। यह आ गई जगह, पहुंच गये। जहां तुमने कहा पहुंच गये, वहीं अहंकार है । तुमने कहा नहीं पहुंचे, पहुंचना होता ही नहीं यहां, चलो चलो, बहो, पहुंचना होता ही नहीं, अहंकार निर्मित नहीं हो सकता।
फिर
सोचते हो, कोई तुम्हें इस हरी घास पर अकेला बैठा हुए देखे ? सारी दुनिया से तुमको कुछ अलग लेखे !
उठो इस एकांत से दामन छुड़ाओ, इस महज शांत से
चलो उतर कर नीचे की सड़क पर
जहां जीवन सिमट कर बह रहा है साहस की दिशा में जहां अतर्कित प्रेम कठोरताओं पर तरल है
सबके बीच में जीवन सरल है
उठो इस एकांत से दामन छुड़ाओ, इस महज शांत से जोन शक्ति देता है, न श्रद्धा, सिर्फ उदास बनाता है।
तुमने देखा, जो आदमी साक्षी पर अटका, वह उदास हो जाएगा, सूखे लक्कड़ की भांति हो जाएगा। पल्लव उसमें नहीं फूटते, गीत उसमें नहीं पैदा होते, उसके प्राणों में कोई रुनझुन नहीं रह जाती। मुर्दे की भांति महज शांत है, लेकिन शांति में कोई संगीत नहीं है। शांति निर्जीव है। जीवन नहीं है। कब्र की शांति, मरघट की शांति । ऐसी शांति नहीं जो बोलती है; ऐसी शांति नहीं जो नाचती है। क्या तुम मरघट की भांति शांत होना चाहते हो ?
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कन्फ्यूशियस से उसके एक शिष्य ने पूछा कि मुझे शांत होना है। तो कन्फ्यूशियस ने पूछा : कैसी शांति चाहता है, मरघट की शांति ? तो वह तो तू मर कर हो ही जाएगा, उसकी जल्दी क्या है? वह तो हो ही जायेगा। अपनी कब्र में जब पड़ जायेगा तो शांत हो जायेगा, उसकी जल्दी क्या है? ऐसी क्या जल्दी मरने की? अभी दूसरी शांति खोज, जीवंत !
इस भेद को समझना । मुर्दा शांति को तुम वास्तविक शांति मत समझ लेना । मुर्दा शांति तो एक जड़ अवस्था है। भय के कारण तुमने अपने को सब भांति सिकोड़ लिया; हिलते-डुलते भी नहीं। कभी-कभी तुमने भय में देखा, ऐसा हो जाता है। अक्सर ऐसा होता है कि जब सिंह किसी जानवर पर हमला करता है तो वह जानवर वैसे का वैसा ठिठुर कर खड़ा हो जाता है, जैसे बर्फ जम गई। जो लोग इसका अध्ययन करते रहे हैं वे बड़े हैरान होते हैं कि मामला क्या है। यह मौका तो भागने का था और इस वक्त तो जड़ हो जाना खतरनाक है। लेकिन भय इतना है कि भागने में घबड़ाहट है; भय इतना है कि जड़ हो गया है।
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कभी तुमने भी देखा होगा, गहरे भय में तुम एकदम ठहरे रह जाते हो, अवाक; हिलडुल भी नहीं पाते। कभी भय इतना जोर से पकड़ लेता है जैसे पक्षाघात लग गया, लकवा मार गया; खड़े रह गये, हिल भी नहीं पाते। जो लोग भयभीत हो गये हैं संसार की अशांति से, वे भय के कारण खड़े रह जाते
अष्टावक्र: महागीता भाग-4