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________________ मुल्ला नसरुद्दीन एक स्त्री के प्रेम में था । उस स्त्री ने कहा कि विवाह के पहले मैं तुमसे एक बात पूछ लेना चाहती हूं। अभी तो मैं जवान हूं, सुंदर हूं, जब मैं चालीस वर्ष की हो जाऊंगी और मेरे गाल पिचक जायेंगे और बाल सफेद होने लगेंगे और चेहरे पर झुर्रियों के पहले दर्शन होने लगेंगे और मैं बूढ़ी होने लगूंगी, तब भी तुम मुझे प्रेम करोगे ? मुल्ला ने कहा : 'अरे तो चालीस वर्ष में तुम्हारा ऐसा होने का इरादा है ? तो वह बात ही खत्म करो! इस झंझट में पड़ें ही क्यों ! अगर चालीस वर्ष में तुम्हारे ऐसे इरादे हैं - इस चेहरे पर झुर्रियां डाल देने के और बाल सफेद कर लेने के और गाल पिचक जाने के, तो क्षमा करो ! अच्छा किया, पहले ही बता दिया शादी के पहले, नहीं तो अभी शादी में उलझ जाते तो और झंझट होती। यह बात ही भूल जाओ ।' तुम्हारा धार्मिक आदमी तुमसे क्या कह रहा है? वह कह रहा है : कहां अस्थिपंजरों के पीछे पड़े हो ! स्वर्ग में अप्सरायें हैं, स्वर्ण की उनकी काया है, उन्हें खोजो ! पद के पीछे पड़े हो ! ये दिल्लियां बनती-बिगड़ती रहती हैं ! तुम इस झंझट में न पड़ो। ऊपर एक बड़ी दिल्ली है; वहां जो पहुंच गया, पहुंच गया। यहां की दिल्ली का तो कुछ भरोसा नहीं- आज तख्त पर, कल नीचे! जो तख्त पर है वह गिरता ही है। दिल्ली पहुंच पहुंच कर होता क्या है— राजघाट पर कब्र बन जाती है ! आखिरी परिणाम हाथ में क्या लगता है? एक और दिल्ली है ऊपर — परमपद ! वहां पहुंचो । यह तुम्हारी तृष्णा को फैलाने की बात हो रही है । तुमसे कहा जाता है क्षणभंगुर को छोड़ो, शाश्वत को खोजो ! मगर बात वही है, भाषा वही है, दौड़ वही है, तृष्णा वही है। और बड़े अंधड़ चढ़ेंगे तुम्हारी. छाती पर, और बड़ी लहरें उठेंगी! तुम और अशांत हो जाओगे । मेरे पास जब कोई साधु-संन्यासी आ जाता है तो उसे मैं जितना कंपते और परेशान देखता हूं, उतना सांसारिक आदमी को कंपते परेशान नहीं देखता। क्योंकि तुम तो शक्य की खोज में लगे हो, वह तो अशक्य की खोज में लगा है। तुम तो संभव के पीछे पड़े हो, वह असंभव के पीछे पड़ा है। तुम्हारी घटना तो घट सकती है, इसके हजार प्रमाण हैं; उसकी घटना तो कभी घटी, इसका एक भी प्रमाण नहीं है। कौन ने किसको मोक्ष जाते देखा ? मैं तुमसे कहता हूं : कोई कभी मोक्ष गया ही नहीं । महावीर मुक्त हुए, मोक्ष थोड़े ही गये । महावीर मोक्ष थोड़े ही गये – जाना कि मुक्त हैं; पहचाना कि मुक्त हैं। इस क्षण में, इस वर्तमान में, इस अस्तित्व के स्वाद में डूब कर पाया कि कैसे पागल थे ! उसे खोजते थे जो मिला ही हुआ है! - बुद्ध को जब ज्ञान हुआ और किसी ने पूछा : 'क्या पाया?' तो उन्होंने कहा : 'मत पूछो ! पूछो ही मत। क्योंकि जो पाया, वह मिला ही हुआ था । भूल गये थे, विस्मरण हो गया था, याद न रही थी । अपनी जेब में ही पड़ा था और याददाश्त खो गई थी ।' यह विस्मरण हुआ है, पाना थोड़े ही है! पाया तो हुआ ही है । जानो न जानो, मोक्ष तुम्हारा स्वभाव जानो न जानो, तुम परमेश्वर हो, परमात्मा हो ! ' तो तृष्णा के कारण बाधा पड़ रही है। रुको तो अपने से मिलन हो जाये। तुम भागे-भागे हो, अपने से मिलना नहीं हो पाता। और सबसे मिलना हो जाता है, बस अपने से चूकते चले जाते हो । हेयोपादेयता तावत्संसार विटपांकुरः । 40 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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