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________________ फिर विकल हैं प्राण मेरे ! तोड़ दो यह क्षितिज, मैं भी देख लूं उस ओर क्या है ? जा रहे जिस पंथ से युग-कल्प, उसका छोर क्या है ? फिर विकल हैं प्राण मेरे ! भक्त तो विकल होगा, रोयेगा, विरह की अग्नि में जलेगा, आंसुओं से भरेगा, क्षार-क्षार हो जायेगा, खंड-खंड हो कर बिखर जायेगा। लेकिन इस पीड़ा में बड़ा मधुर रस है। यह पीड़ा दुख नहीं . है, यह पीड़ा सौभाग्य है । और अगर तुम राजी रहे तो एक दिन वसंत भी आता है। अगर तुम चलते ही रहे तो पतझड़ से गुजर कर एक दिन वसंत भी आता है। जब मैंने मरकत पत्रों को पीराते मुरझाते देखा जब मैंने पतझर को बरबस मधुबन में धंस जाते देखा तब अपनी सूखी लतिका पर पछताते मुझको लाज लगी जब मैंने तरु-कंकालों को अपने से भय खाते देखा पर ऐसी एक बयार बही, कुछ ऐसा जादू-सा उतरा जिससे विरवों में पात लगे, जिससे अंतर में आह जगी सहसा विरवों में पात लगे, सहसा विरही की आग लगी पर ऐसी एक बयार बही, कुछ ऐसा जादू सा उतरा एक बार तुम उतर जाओ इस पीड़ा की अग्नि में, भक्ति की अग्नि में, जल जाओ, दग्ध हो जाओ- - आता है वसंत, निश्चित आता है। इस पीड़ा को सौभाग्य समझना । धन्यभागी हैं वे जो प्रेम में मिट जाने की सामर्थ्य रखते हैं। परमात्मा उनसे बहुत दूर नहीं है । वे परमात्मा के मंदिर बनने के लिए प्रतिपल तैयार हैं। द्वार खुले और परमात्मा प्रवेश कर जाता है। नहीं, तुम्हारे आंसुओं की कभी भी तौहीन न होगी – कभी हुई नहीं - कभी भी नहीं हुई है। शब्द चाहे व्यर्थ चले गये हों, आंसू कभी व्यर्थ नहीं गये हैं । और जो परमात्मा के चरणों में आंसू ले कर पहुंचा है, खाली नहीं लौटा है। क्योंकि आंसू ले कर जो गया, वह खाली गया और भर कर लौटा है। जल्दी ही बयार चलेगी, फिर पत्ते लगेंगे, फिर फूल खिलेंगे ! वसंत निश्चित आता है ! हरि ॐ तत्सत् ! खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं 31
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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